एकलव्य ( महाभारत अभिमन्यू से एकलव्य तक) अध्याय 4
दुनियाँ में बहुत बड़ी विपदा आने वाली थी जो कि असुरश्रेष्ठ शुक्राचार्य के द्वारा होने वाला था,
शुक्राचार्य भारत पे ही नहीं पूरे ब्रह्मांड पे अपनी थाक जमानें की फिराक में था
शुक्राचार्य सारे असूरों के गुरु थे जिनका मकसद साफ था पूरे ब्रह्मांड में असुरों की
ताकत दिखाना इंसानों को गुलाम बनाना और अच्छाई को पूर्ण रूप से खत्म
करना।
मगर भोलेनाथ भी पीछे कहाँ हटने वालों में से थे, उन्होंने इन बुराइयों से युद्ध करने
के लिए तो अपनी लीला पहले से ही बना ली थी।
अभिमन्यू का दिल बड़ा ही कोमल और साफ था, वो भोलेनाथ का दृढ़ भक्त था।
देश में बहुत बड़ा तूफान आया ये तूफान किसी और ने नहीं बल्की असुरश्रेष्ठ
शुक्राचार्य ने भेजा था।
ये तूफान में विषैला पदार्थ था ये वहीं विषैला पदार्थ था जो कि स्वयं भोलेनाथ
जी ने अपने कण्ठ में धारण किया था, उस विष का नाम कालकूट था ये विष
अत्यंत शक्तिशाली था।
उसी विष की एक बूंद धरती की तरफ भेज दिया था शुक्राचार्य ने, उधर अभिमन्यु
को आभास हुआ कि कुछ बहुत बड़ा संकट आने वाला है।
वो संकट को भाँप पाते कालकूट बहुत तेजी से पृथ्वी की तरफ आ रहा था उधर
पूरी दुनियाँ के वैज्ञानिक ये ढूंढने में लग गए की ये उल्कापिंड है या कुछ और !
नंदेश्वर अभिमन्यू को बोलते है,
नंदेश्वर - ये कोई तूफान नहीं है बहुत बड़ी संकट की निशानी है, कालकूट की बूंद है
ये जो कि धरती पे आ रहा है इनसे पूरा ब्रम्हांड खत्म हो जाएगा।
अभिमन्यू - नंदेश्वर तो किया इनको रोकने का को उपाय नहीं है?
नंदेश्वर - कैसे भी कर के हमे वो अमृत चाहिये जो देवताओं के पास है।
अभिमन्यू - तो फिर वो हमें मिलेगी कहाँ ?
नंदेश्वर - उसके लिए समुद्र मंथन को समझना बहुत ज़रूरी है, जब समुद्र मंथन
हुआ था तो चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी।
इन रत्नों में अमृत और विष भी निकले थे। विष तो भगवान शिव ने पी लिया और अमृत के लिए दोनों
दलों में युद्ध छिड़ गया।
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी का वरण कर लिया। इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग रहे थे,
बाकी देवता उसकी रक्षा कर रहे थे। जयंत दानव से घिर गए, छीना-
झपटी में चार स्थानों पर अमृत की बूंदें पृथ्वी पर छलकीं, कीं वे स्थान प्रयाग,
नासिक, उज्जैन और हरिद्वार हैं।
हमे इन्ही स्थानों मे से किसी एक जगह से कालकूट का तोड़ मिल सकता है।
अभिमन्यु - एक काम करते है वहाँ पापा, राज, विदयांजली चले जाएंगे और हम
इसको रोकते है।
अभिमन्यू के पापा का नाम जयंत है वो अर्क्योलोजिस्ट है, इनकी माँ का नाम शांती है जिनके पास भी पावर होती है।
नंदेश्वर - हाँ ठीक है।
वो दोनों कालकूट के प्रभाव को विफल करने चले जाते है, मगर कर नहीं पाते क्यों
की तूफान बहुत शक्तिशाली होता है,
ऊपर से शुक्राचार्य का भी असर था उस पर उसी का फायदा उठाते हुए, शुक्राचार्य
नदेश्वर को अपहरण कर लेता है।
अभिमन्यू चिल्लाता रहता है, नन्द - नन्द करते हुए, अभिमन्यू अपने दिल के पास
हाँथ रख के बोलते है की है भोलेनाथ मुझे वहाँ पहुँचा दो जहाँ अभी इस वक्त मुझे
होना चाहिए था।
टाईम ट्रेवल के द्वारा एक डाइमेंसन के द्वारा किसी और डाइमेंसन में पहुँच जाते हैं,
तो वो देखते है की यहाँ समुद्र मंथन हो रहा है, फिर वो थोड़ा आगे जाते है,
तो उन्हे शुक्राचार्य भी नजर आते है, वो भड़का होता है।
और वो देखता है की उनके हाँथ में कालकूट की बूंद है, और वो पृथ्वी की ओर
भेज रहा है, उसी वक्त अभिमन्यू बोलता है की शूक्रा मै तुझे छोड़ुंगा नहीं और वो
उस विश पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।
दो शक्तियाँ आपस में टकरा रही थी एक बुराई तो दूसरा अच्छाई की कालकूट
स्वयं ही विश था इसीलिए अच्छाई की ताकत वहाँ पे हारने लगी थी,
तो अचानक से आकाशवाणी होती है और वो बोलते है, की अभिमन्यू इस विष को
अपने अंदर समाहित कर लो।
ये सुन के उस विष को अभिमन्यू अपने अंदर समाहित कर लेता है और वो काफी
कमजोर भी हो जाता है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड बच जाता है मगर अभिमन्यू कालकूट के
प्रभाव से बेहोश हो जाता है और उनके अंदर डेविल आजाता है।
जो की उनकी अच्छाई पर हावी हो जाता है, हालांकि अभिमन्यू होश में आजाता
है, और वो खुद को शक्तिशाली महसूस करता है उनमें अहंकार भी आजाता है
और वो नंदेश्वर को भूल जाता है।
ये सारी बात जब उनके परिवार को महसूस होता है तो उनके परिवार वाले
ये जानना चाहते है, की आखिर ऐसा हुआ किया था जिनकी वजह से ये ऐसी
हरकत कर रहा है गुंडे और बदमाशों को खूंखार बन के मार रहा है।
जयंत अभिमन्यू को बेहोश कर देता है, और उन्हे अपने लैब में लेकर आजाते हैं तो
वो कुछ रसायनिक पदार्थ से वो उनके पिछले दिनों में लेकर जाते हैं तो उन्हे पता
चलता है कालकूट विष की वजह से ही ये ऐसी हरकत कर रहा है,
उधर शुक्राचार्य खुश होता है बोलता है की हमारा ये षड्यंत्र विशफल हो गया हो
परंतु कालकूट तो अभिमन्यू के अंदर है अब तो वो असुरों का सेनापती होगा
सेनापती।
जयंत कालकूट का तोड़ ढूँढने में लग जाते है, तो पता चलता है की अमृत को
शुक्राचार्य ले चुका होता है जयंत इस कोशिश में नाकाम हो जाते है।
अब शुक्राचार्य सोचता है की नंदेश्वर मेरे कब्जे में है और अब मै अभिमन्यू को
बुराई का सिपाही बनाने के लिए सात चक्रव्यूह बनाऊँगा, देखते है वो ये सात
चक्रव्यूह कैसे भेदता है, और अब उसका साथ देने तो नंदी भी नहीं है।
शुक्राचार्य के चक्रव्यूह में अभिमन्यू फसता चला जाता है, क्यूंकी उनके अंदर बुराई
जो था, अभिमन्यू जैसे हरकत कर रहा था इनसे वो खुद ही अंजान था लेकिन
उनकों ये जरूर समझ आ चुका था की ये सब शुक्र कर रहा है।
और वो बहुत बड़ी योजना बनाया है जो कि कोई भी नहीं समझ पा रहे थे, श्रुती
को ये सब आश्चर्य वाली बातें लग रही थी की अभिमन्यू को किया हो गया है इनके
अंदर का डेविल कैसे निकालें, तो वो महाभारत में देखती है की अभिमन्यू को ये
शुक्रा कैसे मार सकता है, तो उन्हें सात चक्रव्यूह के बारे में पता चलता है।
तो वो समझ जाती है कि शुक्रा इनको बुराई का सिपाही बनाना चाहता है,
ये बात शांती को बताते है।
नवरात्र का समय चल रहा था माँ दुर्गा के भक्त-गण माता दुर्गा के अराधना मे मग्न
थे, तब शांती कहती है जयंत से की अगर हमे अभिमन्यू को बचाना है तो
कैसे भी कर के अभिमन्यू को माँ दुर्गा के पंडाल में ही रखना होगा।
मजेदार बात ये है की विदयांजली लखनऊ शहर की तेज तर्रार सुप्रीटेंडेंट
ऑफ पोलिस होती है, श्रुती और विदयांजली दोनों ही दोस्त होते है।
श्रुती आर्मी अधिकारी होती है तो वहीं विदयांजली सुप्रीटेंडेंट अधिकारी होती है,
शुक्राचार्य को समझ आने लगता है की ये लोग अभिमन्यू को पंडाल में इसीलिए
रखा है ताकि बुराई उन पर हावी न हो सके कोई बात नहीं, आखिर मै भी
शुक्राचार्य हूँ इतनी आसानी से तो हार नहीं मानूँगा।
भोलेनाथ आखिर भक्त जो हूँ आपका आपकी तपस्या जो किया हूँ
आपने मुझे वरदान दिया है।
कैसे छोड़ दूँ मै इसे मुझे इस संसार पे अपनी हुकूमत जो चमकानी है,
और वो तभी संभव है जब वो सप्तऋषि मेरे वश मे होगा सप्तऋषि की ताकत
मिली है न इस अभिमन्यू को देखते है।
और ये मूर्ति किया इनकी रक्षा कर पाएगी है तो ये मूर्ति ही है न, और रही बात उस
अभिमन्यू की माँ की कोई बात नहीं उनका भी हल है मेरे पास।
तब वो रक्तबीज नाम के असुर को जन्म करता है और उनको कहता है की इस
अभिमन्यू
को उनके परिवार वालों के शरीर में जाके मार दो।
रक्तबीज – जो हुक्म गुरुदेव
शुक्राचार्य
– विजयभव
इधर पंडाल मे गरबा डांस हो रहा था उसी वक्त रक्तबीज उस पंडाल के बाहर
आजाता है लेकिन वो असुर था तो वो उस पंडाल में तो नहीं जा सकता था,
लेकिन वो ये जरूर जानता था की कोई न कोई बाहर जरूर आएगा
रक्तबीज एक राज के दोस्त का रूप धारण कर के राज को फोन कर के बाहर
बुलाते है और राज जैसे ही पंडाल के बाहर आते है तो रक्तबीज राज के अंदर
आ जाते है, इसी तरह से रक्तबीज सबके शरीर में प्रवेश कर जाते है, सिर्फ शांती
को छोड़ के शांती सोच में पड़ जाते है की ये सब गए तो गए कहाँ तो शांती भी
बाहर आजाती है और वो पास के जंगल में चली जाती है, वहीं उनके पीछे से
शुक्राचार्य धावा बोल देते है।
और शांती का गला पकड़ के बोलते है की तुम बड़ी ही चालांक हो, जो मेरा प्रपंच
भांप लिए और अभिमन्यू को चक्रव्यूह से बाहर निकालने के लिए माँ दुर्गा के
पंडाल में ले गई मै भी शुक्राचार्य हूँ मूर्ख एक वो मूर्ती है जिसे तुम लोग माँ का
दर्जा दी हो और एक तुम माँ हो जिनकी गर्दन मेरे हाँथ में कैद है आखिर कौन
बचाएगा अभिमन्यू को !
ये लोग वहीं अभिमन्यू के परिवार के सभी लोग आजाते है।
ये देख के शांती थोड़ी चौंक जाती है, जब वो अपनी छटी दृष्टि से देखते है,
तो पता चलता है की रक्तबीज उन पर हावी होता है, वहीं दूर से एकलव्य ये सारा
दृश्य देख रहा होता है भोलेनाथ का प्रपंच बड़ा ही निराला होता है।
एकलव्य बहुत पावरफूल और ओजस्वी हो चुका होता है, उनके पास एक अलग
ही प्रकार
का तेज होता है।
वहीं जब एकलव्य श्रुती को देखते है तो वो चौंक जाता है समझ नहीं पाता तो वो
भोलेनाथ से बोलता है गुरु ये श्रुती यहाँ क्यूँ है, तो वो अपने दिव्य दृष्टि से समझ
जाता है सारी रड़नीती।
अभिमन्यू उन सब को ढूंढते हुए आता है, उसी स्थान पर तो वो देखता है शुक्रा को
चिल्लाते हुए बोलता है
रक्तबीज – मार दो अभिमन्यू को, और मै इसे।
अभिमन्यू देखता है उन्ही के परिवार वाले उनके खिलाफ हो गए है,
और वो समझ नहीं पाता तो एकलव्य वहाँ पे अंधेरा कर के शांती को बचा लेता है
शुक्राचार्य समझ नहीं पाता है की शांती कैसे बची और किसने बचाया उन्हे
आभास हो जाता है की कोई शक्ती है यहाँ पे जैसे स्वयं भोलेनाथ हो उधर
अभिमन्यू ही परिवारों के बीच घिरा था और वो परिवार से लड़ रहा था।
शांती बोलती है एकलव्य से प्लीज़ मेरे बेटे को बचा लीजिये।
एकलव्य –
कुछ नहीं होगा आपके बेटे को माँ
एकलव्य वहीं से छलांग मारता है, और वो उस चक्रव्युह में कूद जाता है उन्हे पता
होता है ये रक्तबीज है।
अभिमन्यू
– तुम कौन हो।
एकलव्य – अभी वो जानने का समय नहीं हैं अभी इन सब को सही करना
जरूरी है फ़िलहाल !
शुक्राचार्य वहाँ से गायब हो चुका होता है, वहाँ पे भयंकर लड़ाई होती है
एकलव्य बोलता है
एकलव्य – अभिमन्यू ये रक्तबीज है हमे इनकी एक भी बूंद जमीन पे नहीं
गिरने देना है, ऐसा हुआ तो और जन्म होते जाएंगे तो किया करें इनको कैद
करते है फिर आगे साक्षात माता दुर्गा जानती है किया करना है एकलव्य और
अभिमन्यू दोनों अपनी शक्तियों का एक साथ इस्तेमाल कर के उन सब को
कैद कर देते है।
लेकिन अभिमन्यू बोलता है मै मार डालूँगा इन सबको फिर एकलव्य अभिमन्यू को बेहोश कर देते है और वहाँ पे
साक्षात काली
माता आजाते है और उन सब के अंदर से रक्तबीज को निकाल देते है रक्तबीज को खत्म कर देते
है।
अचानक से
माता दुर्गा और एकलव्य विलुप्त हो जाते है, वहाँ से विदयांजली गायब हो जाती
है, शुक्राचार्य का ये
योजना भी
विफल हो जाता है, बोलते है अब मुझे ही कुछ
करना होगा विदयांजली की तरफ देख के वो उसे बाहर
लेकर आते
है, और चिल्लाते है अभिमन्यू - अभिमन्यू तो अभिमन्यू
वहाँ पहुँच जाते है
अभिमन्यू
– छोड़ दे विदयांजली को शुक्रा
शुक्राचार्य
– अभिमन्यू ऐसा नहीं बोलते है तुम एक असुर हो चुके हो तुम में इमोशन अच्छे नहीं लगते
है
अभिमन्यू
– अगर कुछ भी हुआ मेरी विदयांजली को समूचा असुर लोक खत्म कर दूंगा
शुक्राचार्य
– ये बात ये शब्द सुनने को मेरे काँन तरस रहे थे अब लग रहा है तुम आसुरी सेना के
सिपाही बन
सकते हो।
अभिमन्यू
– शुक्रा तेरी चाल कामयाब नहीं होगा।
वहीं पे अभिमन्यू
के अंदर का शैतान बाहर आजाता है, क्या कर रहा है अभिमन्यू
हाँथ मिला ले।
ऐसा ही चल
रहा था उसी वक्त शुक्रा कहता है की वो सप्तऋषि की ताकत मुझे दे-दे तभी मैं इसको छोड़ुगा।
अभिमन्यू
– अब मै इस तारे की वजह से अपनों को खो नहीं सकता हूँ।
और वो भोलेनाथ
का नाम लेकर के उन्हे वो सात तारे दे देते है अभिमन्यू उसी क्षड़ कमजोर
हो जाता है
और ज़मीन पे गिर जाता है।
शुक्राचार्य
वो तारा लेकर शुक्र ग्रह पर चला जाता है, इधर अभिमन्यू
को चोट लगी होती है और परिवार वाले
अस्पताल लेकर
चले जाते है, वहाँ पे डॉक्टर जवाब दे
देते है बोलते है अब तो स्वयं ही भोलेनाथ उनको बचा सकते
है और ये
काफी कमजोर भी हो गए है हमने एक सुपर हीरो खो दिया है।
श्रुती -
डॉक्टर कुछ तो तरीका होगा
डॉक्टर –
सौरी
अब वो सब
भोलेनाथ की पुजा करते है अस्पताल में अचानक से तेज हवा चलने लगती है, सबकी मोवमेंट स्थिर हो
जाती है एकलव्य
अस्पताल में आते है उनके पीछे दिव्य शक्तियाँ होती है और वो अभिमन्यू के कछ में आते
है और
उन्हे अमृत
की बूंद पिलाते है कुछ मंत्र बोलते है और अभिमन्यू होश में आजाते है।
एकलव्य वहाँ
से विलुप्त हो जाता है, सब कुछ पहले की तरह नॉर्मल
हो जाता है।
डॉक्टर जैसे
ही देखते है तो उन्हे किसी चमत्कार से कम नहीं लगता है और वो अभिमन्यू के परिवार वालों
को
बताते है
की अभिमन्यू होश में आगया है और ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।
लेकिन अभिमन्यू
की माँ को आभास होता है कोई सकारत्म्क शक्ति है जो हमारे बच्चे की रक्षा कर रही है,
वो हे भोलेनाथ
कहती है, और वो अभिमन्यू के रूम
मे जाते है जिसमें अभिमन्यू ऐडमिट होता है।
और वो लोग
अभिमन्यू को देख कर खुश हो जाते है उन्हे घर ले आते है, और अब अभिमन्यू के पास
किसी भी तरह
की शक्ति नहीं होता है ऐसा सबको लगता है और ऐसा अभिमन्यू को भी शुक्रा को भी यही लगता
है
लेकिन भोलेनाथ
जानते थे की हमारी लीला किया है।
शुक्रा भोलेनाथ
से बोलते है महादेव जी आपका बच्चा अत्यंत शक्तिशाली था किया हुआ वो असुर का सेनापती
नहीं
बना तो उनकी
शक्तियाँ तो चली गई है न और वैसे भी अब वो कुछ चाह के भी कुछ नहीं कर सकता है,
हसने लगता
है शुक्रा कहते है, विध्वंशक प्रकट हो एक
विशालकाय हथियार प्रकट होता है,
शुक्राचार्य
उन्हे ऐक्टिवेट करने की कोशिश करते है, लेकिन वो
ऐक्टिवेट नहीं हो पाता है शुक्रा को
समझ आ जाता
है भोलेनाथ ने कोई प्रपंच रचा है लेकिन वो प्रपंच किया है वो नहीं समझ पाता है तो
वो पागलों
की तरह हरकतें करने लगता है, फिर वो कहता है भोलेनाथ
तुमने मेरे साथ छ्ल किया है
अब अभिमन्यू
नहीं बचेगा वो त्रिपुरासुर को प्रकट करता है त्रिपुरासुर तिन असुर होते है, उधर एकलव्य
को आभास हो
जाता है, की त्रिपुरासुर आ गया
है एकलव्य भोलेनाथ को याद करते है कहते है
एकलव्य -
त्रिपुरासुर आ गया है नाथ
भोलेनाथ
- हाँ एकलव्य उन्हे पता चल गया है की अभिमन्यू की शक्ती नहीं गई है और वो युद्ध को
चुनौती दे
दिया है, लेकिन वो अभिमन्यू को
मारने की कोशिश करेंगे यहीं समय है तुम्हें कैसे भी कर
के अभिमन्यू
को सुरक्षित रखने की
एकलव्य -
जी गुरु
भोलेनाथ
- और तुम्हें नंदेश्वर को अभिमन्यू के द्वारा बचाना होगा जैसे शुक्रा नें प्रपंच खेला
है अभिमन्यू को
मारने का
उसी तरह से तुम्हें प्रपंच रचना होगा अभिमन्यू को बचाने का उनके दिल में अपनी जगह बनाने
का।
एकलव्य -
जी गुरु मै समझ गया आपकी योजना
भोलेनाथ वहाँ से ध्यान में चले जाते है उधर शुक्रा असुरों को भेजते है, अभिमन्यू को खत्म करने के लिए, त्रिपुरासुर
पहले योजना बनाते है विदयांजली को अपहरण करने का लेकिन त्रिपुरासुर इसमें नाकाम हो जाता है तो वो लोग
श्रुती को अपहरण
कर लेते है, मगर ये लोग भूल जाते है
की श्रुति एक खुफिया आर्मी अधिकारी होती है।
वो लोग श्रुति
को एक गोदाम में लेकर आजाते है, श्रुति बोलती है-
श्रुति -
तुम लोगों को नहीं मालूम की किसे यहाँ लेकर आए हो,
उधर शुक्राचार्य
आजाते है शुक्राचार्य बोलते है।
शुक्राचार्य
- बेवकूफ़ों ये विदयांजली नहीं है, तुम किसे पकड़ के लाए हो
त्रिपुरासुर
भी आजाते है, त्रिपुरासुर कहते है
त्रिपुरासुर
- ये तो अभिमन्यु की दोस्त है कोई बात नहीं अब मजा आएगा और भी
त्रिपुरासुर
और श्रुति के बीच में लड़ाई शुरू हो जाती है मगर त्रिपुरासुर श्रुति को बंधक बना लेते
है और उन्हे कैद कर लेते है।
उधर पूरे लखनऊ की पोलिस फोर्स श्रुति को ढूँढने में लग जाते है ऊपर से मेजर अभय का भी प्रेशर होता है
पोलिस डिपार्टमेन्ट पर मगर एकलव्य काफी खुश था की अब एंट्री का समय नजदीक आ रहा है क्योंकि ये लोग
नहीं जानते हैं की इनहोने किस अग्नि को किडनैप किया है।
अभिमन्यु पागलों की तरह श्रुति को ढूंढते-ढूंढते उस जगह पर पहुँच जाते है त्रिपुरासुर और शुक्रा को पता
चल जाता है की अभिमन्यू आ गया है त्रिपुरासुर शुक्रा और बारह असुर की सेना एक तरफ और दूसरी तरफ
सिर्फ अभिमन्यू और उनका साथ देने के लिये एकलव्य वो भी गुप्तरूप से।
शुक्रा -
अभिमन्यू तुमने मुझे धोका दिया है,
वो सात तारे
देकर।
अभिमन्यू - शुक्रा ये रचना तो स्वयं भोलेनाथ जी ने किया है, तुम तो उनके भक्त हो क्यों नहीं पुछते हो,
और तुमने बहुत बड़ी गलती
कर दी है।
शुक्रा - जिस प्रकार इंसानी भाषा में प्यार के लिए सब जायज़ है उसी प्रकार अधर्म की स्थापना करने के लिए
सब जायज़ है इंसानी बच्चे, अभिमन्यू और अब तुम मेरे इस चक्रव्यूह में फस चुके हो ये त्रिपुरासुर तुम्हें सिर्फ
एक दिख रहा
है मगर ये कितने है तुम्हें भी नहीं पता और वो हसने लगता है हस्ते हुए वो विलुप्त हो
जाते है।
वहाँ पे घमासान युद्ध शुरू हो जाता है मगर असुरों की तरफ त्रिपुरासुर थे, जिन्हे ब्रम्हा जी से वरदान मिला था
की उनको कोई भी नहीं मार सकते है, जब अभिमन्यू जमीन पर चित हो जाता है तो उसी वक्त गोदाम की
लाईट एकलव्य बंद कर देता है और वो हवा में उड़ता हुआ
नज़र आता है।
एकलव्य - अरे तुमलोग हमें कैसे भूल गए यार मेरी हीरोईन को और मेरे मित्र की ये दुर्दशा कर के तुम त्रिपुरासुर
ऐसे ही चल दिये
त्रिपुरासुर
- ये तो असुरीविद्या है तुम्हें कैसे आती है, कौन हो तुम
एकलव्य -
क्यों बेटा अपने काल त्रिपुरांतकारी को बूल गए हो किया, ये कहाँ का इंसाफ?
त्रिपुरासुर
- वो तो खुद भोलेनाथ है, तुम कैसे हो?
एकलव्य -
तो आज़मा लो फिर।
उनके प्रकोप से सारे असुर धराशिष होते चले जाते है, क्यूंकी वो अच्छाई के लिए आसुरीविद्या का इस्तेमाल कर रहे
थे जो की स्वयं महाकाल ने दिया था।
ये सारा दृश्य श्रुति देख के अचंभित हो जाती है, वो सोचते है की ये एकलव्य यहाँ कैसे आया और उनके पास इतनी
पावर आई कैसे त्रिपुरासुर वहाँ से
भाग जाते है क्योंकि उनके पास स्वयं महादेव की ताकत नज़र आती है।
श्रुति एकलव्य
के गले लग जाती है और बोलती है,
श्रुति -
एकलव्य तुम्हारे पास ये मैजिकल पावर आई कैसे
एकलव्य -
बताता हूँ पहले इनकी जान बचा लूँ ।
एकलव्य अभिमन्यू के पास आते है और उन्हे होश में लाने की कोशिश करते है, मगर होश में नहीं आते तो वो
उनके सर पे हाँथ रख देते है, फिर महामृत्युंजय मंत्र बोल कर के होश में ला देते है, उसी समय विदयांजली और
उनकी टिम वहाँ पहुँच जाते है,
विदयांजली
एकलव्य पे निशाना लगाते है और बोलते है,
विदयांजली
- छोड़ दो श्रुति और अभिमन्यू को नहीं तो मै शूट कर दूँगी।
श्रुति - नहीं विदयांजली तुम गलत समझ रही हो मुझे इन्होने नहीं बलकी असुरश्रेष्ठ शुक्रा ने और त्रिपुरासुर ने
किडनैप किया था।
वास्तव में
वो तुम्हें किडनैप करने वाले थे,
लेकिन मुझे
गलती से किडनैप किया
विदयांजली
- ओह, और वो बंदूक को अपने बंदूक पेटी में रख लेती
है।
तो ये कौन
है?
श्रुति -
ये मेरा दोस्त है और मै इनसे प्यार करती हूँ।
विदयांजली
आगे आके हाँथ मिलते हैं, और बोलते है की
विदयांजली
- हाय मेरा नाम विदयांजली है आपका
एकलव्य -
एकलव्य है मेरा नाम एकलव्य
और वो तीनों
वहाँ से चले जाते है घर को उधर त्रिपुरासुर शुक्राचार्य के पास पहुँचते हैं और बोलते
है।
त्रिपुरासुर
- गुरुदेव अभिमन्यू बच गया कोई दिव्य शक्ती आई और मै उन्हे परास्त नहीं कर पाया उनसे
युद्ध
करने से मुझे
क्यों लगा मैं भोलेनाथ से युद्ध कर रहा था, और वो हावी
हो गया मेरे ऊपर
शुक्राचार्य
था कौन वो, पता नहीं मगर वो बोल रहा
था की त्रिपुरांतकारी को बूल
गए हो किया?
त्रिपुरांतकारी
भोलेनाथ को कहते है, ऐसा तो नहीं गुरुदेव वो
भोलेनाथ ही हो।
शुक्राचार्य - अब भोलेनाथ कोनसा प्रपंच रच रहे है समझ नहीं आ रहा इस अभिमन्यू की इस लड़के ने दो बार जाँन
बचाई, आखिर पता करना पड़ेगा भोलेनाथ से मिलना होगा मुझे जानना पड़ेगा आखिर वो
करना किया चाहते हैं।
उधर सब कुछ नॉर्मल हो जाता है, शांति एकलव्य को देख के कहते है ये वहीं है जिन्होने अभिमन्यू की पहले भी
जाँन बचाई थी, और अभी भी।
वो सब खुश
हो जाते है, मगर एकलव्य बोलते है
अभिमन्यू को
एकलव्य – नंदेश्वर जी को बाहर निकालना होगा क्योंकी पृथ्वी पे बहुत बड़ा और आक्रामक युद्ध होने की संभावना
हैं जिसमें कौन किसका साथ देगा पता नहीं कैसे भी कर के नंदेश्वर को शुक्रा के चंगुल से निकालना होगा
अभिमन्यू
– लेकिन तुम्हें कैसे पता की नन्द उनके कब्जे में है,
एकलव्य -
ये तो तुम भी जानते हो की शुक्राचार्य किस तरह का इंसान
है!
अभिमन्यू
– क्या तुम्हें पता है वो हैं कहाँ ?
एकलव्य – नहीं पता होता तो मैं उन्हें बचा चुका होता, शुक्राचार्य तप करने को कैलाश गए है, जहां पे नंदेश्वर जी ने
तुम्हें शिक्षा दी थी खुद पे
और खुद की शक्ति पे कंट्रोल करने की
हमें जो कुछ
भी करना होगा जल्दी ही करना होगा।
बहुत ध्यान
के बाद शिव शुक्राचार्य से प्रसन्न हो जाते है, और बोलते
है की
शिव - मांगो
कोई वरदान एक।
शुक्राचार्य
– प्रभु आप मेरे हो मेरे में आप हो
शिव – मैं
तो सब में हूँ मैं तो आप में भी हूँ इसमे कहने की किया आवश्यकता है
शुक्राचार्य
– मुझे अभिमन्यू को मारने की तरकीब बताइये और वो मानव कौन है?
शिव – तुमने
मेरे पुत्र को अपहरण किया है, और आप चाहते हो मै आपको
बता दूँ ?
शुक्राचार्य – मैं भी तो आपका पुत्र ही हूँ! तो किया एक पिता अपनें ही पुत्र के वध का प्रपंच रच सकता हैं,
बोलिए महादेव ?
शिव – हाँ
वत्स तुम मेरे पुत्र अवश्य हो परंतु मै धर्म के साथ हूँ।
शुक्राचार्य
– धर्म की बात करते हैं आप एक पिता अपने पुत्र के वध का प्रपंच कैसे रच सकता है त्रिपुरांतकारी
शिव – चिंता मत करो तुम्हारा वध नहीं होगा त्रिपुरासुर का वध होगा और तुमने मेरा तप किया है
तो
मै तुम्हें ये अवश्य बताता हूँ की त्रिपुरासुर का वध कैसे होगा।
तुम्हें मै
कुछ दिखाता हूँ वो उन्हे वहीं ले जाते है जहाँ उन्होने वध किया था त्रिपुरासुर का
सभी देवताओं ने शिव को अपना-अपना आधा बल समर्पित कर दिया। अब उनके लिए रथ और धनुष बाण की
तैयारी होने लगी जिससे रणस्थल पर पहुंचकर तीनों असुरों का संहार किया जा सके।
पृथ्वी को ही भगवान् ने रथ बनाया, सूर्य और चन्द्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, विष्णु बाण, मेरूपर्वत धनुष और वासुकी बने
उस धनुष की डोर।
इस प्रकार असंभव रथ तैयार हुआ और संहार की सारी लीला रची गई। जिस समय भगवान् उस रथ पर सवार हुए,
तब सकल देवताओं के द्वारा सम्हाला हुआ वह रथ भी डगमगाने लगा। तभी विष्णु भगवान् वृषभ बनकर उस रथ में
जा जुड़े। उन घोड़ों और वृषभ की पीठ पर सवार होकर महादेव ने उस असुर नगर को देखा और पाशुपत अस्त्र
का संधान कर, तीनों पुरों को एकत्र होने का संकल्प करने
लगे।
उस अमोघ बाण में विष्णु, वायु, अग्नि और यम चारों ही समाहित थे। अभिजित् नक्षत्र में, उन तीनों पुरियों के
एकत्रित होते ही भगवान शंकर ने अपने बाण से पुरियों को जलाकर भस्म कर दिया और तब से ही भगवान
शंकर त्रिपुरांतकर बन गए। त्रिपुरासुर को जलाकर भस्म करने के बाद भोले रुद्र का हृदय द्रवित हो उठा और
उनकी आंख से आंसू टपक गए। आंसू जहां गिरे वहां 'रुद्राक्ष' का वृक्ष उग आया।
'रुद्र' का अर्थ शिव और 'अक्ष' का आंख अथवा आत्मा है।
ये देखने के बाद तो ये स्पष्ट हो गया शुक्राचार्य को की इस युद्ध में भी भोलेनाथ
ही त्रिपुरासुर का वध करेंगे,
शुक्राचार्य – आप हमारे पिता हो आराध्य हो नाथ आप ऐसा कार्य कैसे कर सकते हो आप मुझे वचन दो इस युद्ध में
जब मै या हमारी सेना हारेंगे तो आप हमारे पक्ष से यानी
अधर्म की तरफ से युद्ध करोगे
शिव – ये असंभव है।
शुक्राचार्य – आप ये चाहते हैं की मै असुरों का गुरु शुक्राचार्य एक मानव के आगे नत्मस्तक हो जाऊँ, नहीं नाथ
हमने आपको तप करके हांसील किया
है और आप मेरा साथ अवश्य देंगे नाथ इस युद्ध में।
शिव – तथास्तु कहेके विलुप्त हो जाते है।
तथास्तु कहेने के पृथ्वी लोक पर तेज तूफान आ जाता है और छः घंटे के लिए पूरा अंधेरा हो जाता है एलेक्ट्रिसिटी
भी काम नहीं करता है और सारी चीजें स्थिर हो जाती है एक कंपन्न महेसूस होता है सब को।
ये कंपन्न खतरे की निशानी थी जो की शायद बहुत बुरा था, काली शक्तियाँ एकत्र हो रही थी !
आखिर किया भोलेनाथ वाकई में शुक्राचार्य के पक्ष में एकलव्य और अभिमन्यू से युद्ध करेंगे, ये कोनसी मनीस्थिति
होगी भोलेनाथ की आखिर जो भी होगा-होगा रोमांचक से भरा हुआ।
पांचवें अध्याय में आपको इनका जवाब मिलेगा थोड़ा इंतज़ार करो बॉस।
*शशांक शेखर*
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