एकलव्य (आभासी प्यार) अध्याय 2

बारह  बजे के बाद से समीर की मम्मी परेशान होने लगती है, की समीर अभी तक घर पे नही आया, वो मेघा को फोन लगाती है  मगर कोई जवाब नही मिलता।

 

एक बजे रात को अमीनाबाद थाने से एक फोन आता है ।

 

थाना इंचार्ज - हेलो मैडम आप सुरुची शेखावत जी बात कर रहे है क्या ?

 

सुरुची - जी मैं सुरुची शेखावत बात कर रही हूँ, अलीगंज से ।

 

थाना इंचार्ज - मै अमीनाबाद थाने से विक्रम यादव बात कर रहा हूँ, आपका बेटा ड्रग्स लेते हुए  और मार-पीट करते हुए पकड़ा गया है, आप उनसे  कल मिलने  आजाइए।

 

और फोन काट देते है, समीर की मम्मी काफी परेशान हो जाती है।

 

और वो अभय को फोन करती है।

 

सुरुची- हेलो अभय!

अभय वो समीर को, समीर को ड्रग्स के आरोप में पोलिस ने पकड़ लिया है।

 

अभय-  आराम से, आराम से बोलो क्या हुआ पूरी बात बताओ।

 

सुरुची पूरी बात बता देती है, अभय बोलते है।

 

अभय- देखो तुम चिंता मत करो मैं कुछ करता हूँ।

 

वो DGP दफ्तर में अपने दोस्त कल्याण सिंह को फोन करते है

 

कल्याण सिंह -  बोलिये मेजर साहब आज इतनी रात को कैसे याद किया ?

 

अभय उन्हें सारी बात बताता है, तो वो बोलते है। 

 

कल्याण सिंह - देखिये ये मैटर ड्रग्स का है, वैसे समीर तो ड्रग्स तो क्या नशा वगेरा कुछ करता नहीं है।

अभय- हा वो नही करता है लेकिन उन्हें फसाया गया है, क्या तुम बता सकते हो ये पूरा मैटर क्या है ?

कल्याण सिंह - मुझे समय दो।

अभय - समय नही है मेरे पास।

कल्याण सिंह - ठीक है, मैं कॉन्फ्रेंस करता हूँ, तुम लाईन पर ही रहना।

 

अभय होल्ड में रहता है।

 

कल्याण सिंह - हेलो विक्रम बोल रहे हो तुम ?

विक्रम - जी सर।

कल्याण सिंह - तुमने किसी समीर शेखावत को पकड़ा है क्या ?

विक्रम - जी सर उन्होने ड्रग्स लिया था, नशे में मार-पिट किया था अपने दोस्त के साथ और कोई लड़की भी थी।

अभय- कल्याण पूछो कौन दोस्त थे, और वो लड़की कौन थी।

कल्याण सिंह- विक्रम लाईन पे समीर के पापा है, वो भारतीय सेना में मेजर है, मुझे उन दोनो का नाम बताओ कौन थे वो दोनो ?

विक्रम - कोई मेघा और करण थे, जिनके साथ ये सब हुआ था।

अभय - कल्याण सुनो कॉन्फ्रेंस से हटा दो, और एक काम करो, कल की किसी भी समय की टिकट करो ततकाल।

 

कल्याण सिंह- क्यों मगर ?

अभय- देख भाई मैने जैसा कहा, वैसा करो तुमसे निवेदन है।

कल्याण सिंह - ठीक है, मैं करवाता हूँ।

 

अभय सुरुची को सुबह के चार बजे फोन करते है।

 

अभय - सुरुची सुनो कल्याण जी से बात हुई है, तुम दोनों का टिकट करवा रहे है, कल ही तुम दोनों लखनऊ छोड़ो और किसी को भी मत बताना, यहाँ तक की मेघा और उनके परिवार वालों को भी नहीं।

 

सुरुची- ठीक है।

तीन साल के बाद,  माहाराष्ट्र के पुणे शहर में एक नई पहचान लेकर समीर अपनी जिंदगी से परेशान होके जी रहा होता है, बस उनकी जिंदगी में अब कोई दोस्त नही थे, वो एक आभासी दुनियाँ में जी रहा होता है ।

 

 उन्होंने अपना नाम तक बदल लिया था हर कोई उन्हे एकलव्य कहे के बुलाने लगे थे।

 

उनकी हालत देख कर के बहेन और भाई भी पुणे शहर में शिफ्ट हो जाते है, अब वो सब साथ मे रहते है।

 

फिलहाल घर मे शांती थी, लेकिन एकलव्य अपने ही रूम में बंद रहता था,  उन्होने अपने रूम को पूरा अंधेरा कर रखा था दीवारों पे तरह-तरह के आर्ट्स बने थे।

जिसको देखने से लगता था की ये कितने गहरे सदमे में हो, जिनकी वजह से परिवार वाले चिंतित रहते थे, लेकिन वो लोग कुछ बोल भी नही पाते थे ।

डरते थे कि कहीं कुछ कर न लें एकलव्य के पापा मौका ढूंढने में थे, की कैसे इनको ये सब से बाहर निकालें।

 

एकलव्य DY PATIL INTERNATIONAL COLLEGE में पढ़ता था, वो सुबह 7:30 पे निकल जाया करता था।

शाम को 6 बजे कॉलेज से घर को जाया करता था, जबकी क्लास 9:00 AM बजे से 3:00 PM तक रहता था।

इस बीच के समय मे वो लाइब्रेरी में बैठ के गुजारा करता था, अब उन्हे दोस्त बनाना पसंद नही था।

 

क्लास में विज्ञान के असाइनमेंट प्रोजेट्स पे ग्रुप प्रतियोगिता थी, तो विज्ञान के शिक्षक जिनका नाम अविराज देशमुख था उन्होंने बोला।

 

अविराज देशमुख - बच्चों अभी से एक महीने के बाद आप सब को विज्ञान की असाइनमेंट जमा करनी है, असाइनमेंट का प्रोजेक्ट है पंद्रह।

और क्लास में बच्चे है पैतालीस तो ये ग्रुप असाइनमेंट होगा, एक ग्रुप में तीन बच्चे होंगे, किसी को कोई दिक्कत है तो मुझसे संपर्क करना स्टाफरूम में, लिस्ट नोटिस बोर्ड पे लग जाएगा।

 

बच्चे - जी सर।

 

अविराज सर अपने स्टाफ कक्ष में जाते है, तो पीछे से आवाज आती है।

 

 हेलो सर मुझे आपसे बात करनी है कुछ, वो पीछे मुड़ते है तो देखते है की एकलव्य होता है।

 

अविराज - हाँ एकलव्य।

एकलव्य - सर मै इस प्रोजेक्ट मे अकेले पार्टिसिपेट करूँगा।

अविराज - क्यों?

एकलव्य - यूँ ही

अविराज - मेरे लिये सब बराबर है, ये प्रोजेक्ट काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकी इन प्रोजेट्स से तुम्हारे मार्क्स जुड़ेंगे।

एकलव्य - सर मै मना तो नही कर रहा, लेकीन मै ये प्रोजेक्ट अकेले करूँगा।

अविराज - तुमने unity is strength जैसे शब्द के बारे में सुना है?

 

गुस्सा जाता है एकलव्य और बोलता है

 

एकलव्य – For your kind information unity is strength नाम की कोई चीज नहीं होती, आप कुछ भी कर लो लेकिन में ये प्रोजेक्ट अकेले करूँगा, खुद के दम पे करूँगा।

 

और वो वहाँ से चला जाता है आस-पास के सब लोग सन्न होके देखने लगते है!

 

अविराज कुछ समझ नहीं पाता है, ये सब देख कर जब वो इधर-उधर देखते है, तो उन्हें शर्मिंदगी महेसूस होने लगती है वहां से माफी मांग के निकल जाते है, उसी कॉलेज में श्रुती नाम की लड़की थी वो अपने दोस्त मीनाक्षी से कहती है।

 

श्रुती - ये बंदा कौन था, जिसने इतने बुरे ढंग से बात किया ?

 

मीनाक्षी - छोड़ न क्यों उनके चक्कर मे, अपना दिमाग खराब कर रही है।

 

श्रुती - अबे नहीं यार, इसको पता नही की अध्यापक से कैसे बात करते है?

 

मीनाक्षी - ये ऐसे ही है खड़ूस है नाम इनका एकलव्य है, और बीच सेशन में आया है,  इतना पता है की इनके पिताजी आर्मी में है।

 

श्रुती - तभी तो इसको इतनी अक्कड़ है, अपने बाप का इकलौता होगा ।

 

मीनाक्षी- नहीं रे इनके पिताजी तो काफी सुलझे और स्ट्रेटफॉर्वर्ड वाले व्यक्तियों में से एक है, मैने उन्हें कॉलेज के प्रिंसीपल से बात करते हुए सुना था।

 

श्रुती - छोड़ चल चलते है कैंटीन में।

 

श्रुती मीनाक्षी के कमरे पर आती है मीनाक्षी कहती है,

 

मीनाक्षी - हा श्रुती क्या हुआ?

 

श्रुती - क्या ये सच है?

 

मीनाक्षी - क्या?

 

श्रुती - वही जो मैने सुना है?

 

मीनाक्षी - तू बोलेगी?

 

श्रुती- यहीं की यहीं की तुमको रोहीत ने प्रपोज़  बताया भी नहीं।

 

मीनाक्षी - अब न तुम अपने बारे में भी सोचो?

 

श्रुती - हटो अब बस कर यार ।

 

मीनाक्षी - अरे!

 

श्रुती - देख ये तो तुझे भी पता है की, मैं क्या हूँ और क्या-क्या कर सकती हूँ।

 

मार्शल आर्ट में हरियाणा की टॉप रही हूँ, और ग्रैजुएशन के लिए यहां आई हूँ इन सब के साथ आध्यत्म और manifest Law of attraction का कोर्स कर रही हूँ, तो मेरे लिए ये सब प्यार व्यार नही है।

 

मीनाक्षी- सही है भिड़ू लेकिन तू क्या जाने प्यार क्या होता है,  जिस दिन होगा न उस दिन पूछूँगी

आखिर हो तो तुम भी इंसान !

 

कॉलेज की कैंटीन में रोहित, मीनाक्षी और श्रुती तीनो छोटी सी पार्टी कर रहे थे, वहीं पर एकलव्य कान में गाना सुनते हुए आता है, और रोहित से टकरा जाता है,  उनका मोबाइल जमीन में गिर जाता है,  मीनाक्षी बोलती है।

 

मीनाक्षी - हेलो तुम देख के नहीं चल सकते क्या ओ हेलो ओ हेलो?

 

एकलव्य चुप-चाप सुनता रहता है, लेकिन कोई जवाब नही दे पाता।

और वो छटपटा के चला जाता है,  श्रुती समझ नही पाती है की ये ऐसे क्यों व्यवहार कर रहा है।

लेकिन वो फिर नजर-अंदाज कर देती है और वो बोलती है 

 

श्रुती- छोड़ न मीनाक्षी अबे चल छोड़ इतना लोड मत ले।

 

मीनाक्षी - देखा कितना अजीब है, ये बात भी नही करता किसी से।

 

रोहित - चल छोड़ क्या फर्क पड़ता।

 

लेकिन श्रुती रात के 10 बजे ये सोच रही थी, की वो इतना डरा-डरा महसूस क्यों कर रहा था!

 

तो वो सोचती है की सोशल मीडिया पे कुछ तो मिलेगा, अब वो उसे ढूंढने लगती है ।

 तो वो उन्हें मिलता नही तब वो मीनाक्षी को बोलती है की।

 

श्रुती - यार वो दिन भर मोबाइल में ही डूबा रहता है, तो वो लड़का सोशल मीडिया पे क्यों नही है।

 

मीनाक्षी - तू किसकी बात कर रही है?

 

श्रुती- एकलव्य की।

 

मीनाक्षी - क्या, तू ठीक तो है न, प्यार-व्यार तो नहीं हो गया है न।

 

श्रुती - नही रे वो तो मैं ये सोच रही हूँ की, वो इतना डरा-डरा क्यों महसूस कर रहा था ?

 

यही जानना है की ऐसा क्या है उसके साथ !

तो वो दोनों ही लग जाती है, इस काम मे लेकिन मिलता कुछ नहीं और सो जाती है।

 

उधर एकलव्य के पापा अभय शेखावत अभय को लेकर रविवार को सुबह 12:30 बजे काउंसलर के पास पहुंचते है रिसिप्शन पर ही रोक लेते है।

 

रिसिप्शन कर्मी - सर अभी सर EFT LAW OF ATTRACTION की क्लास ले रहे हैं, आपको ईन्तजार करना होगा।

 

अभय - ठीक है

 

और वो ईन्तजार करने लगते है, शिषे से श्रुती देख लेती है।

 लेकिन वो समझ नही पाती है, की ये एकलव्य है किया !

 

लेकिन वो उस वक्त क्लास में होती है तो वो कुछ कर भी नही सकती।

एक घण्टे के बाद जब क्लास ओवर होता है तो फिर मैं बाहर आता हूँ।

 

मैं - अरे सर जी आप आइये

 

तो वो मेरे केबिन में आजाते है, और बोलते है

 

अभय - शशांक फिलहाल ये अभी ठीक है लेकिन गुमसुम बहुत रहता है, ये इस वजह से काफी कुछ सोचता रहता है।

 

मैं - देखिये फिलाल ये नॉर्मल है लेकिन कुछ चीजों पे इन्हें खुद काम करना होगा, नहीं करेगा तो ये  अपने में ही घुटता रहेगा,  इन्हें दोस्त बनाने होंगे 

एकलव्य - नही सर आप मेरा एक काम कर दो वो सारी चीजें खत्म कर दो, और मुझे आपसे कुछ नही  चाहिए।

 

मैं- देखो एकलव्य हर चीज का हल ये नहीं है की, मैं तुम्हारे दिमाग से डेढ़ साल की चीजें निकाल दूँ।

 

तुम्हे पता है इनका असर क्या होगा, ये तुम खुद ही कर सकते हो लड़ना होगा तुम्हे बिना लड़े कुछ नही मिलेगा।

 

मेरी नजर बाहर जाती है, तो मैं इशारा देता हूँ,  मै रिसिप्शनिस्ट को बुलाता हूँ 

 

मैं - ये बाहर क्यों है?

रिसिप्शनिस्ट  - आपसे बात करनी थी उनको।

मैं - हाँ ठीक है।

 

जब एकलव्य और अभय वहां से चले जाते है तो श्रुती केबिन में आते है पूछते हैं की 

 

श्रुती - ये एकलव्य और उनके डैड आपके पास क्यों आए थे, एकलव्य को क्या हुआ?

 

मैं - तुम जानती हो क्या इन्हें?

 

श्रुती - हाँ ये एकलव्य मेरे क्लास में है, लेकिन क्या हुआ?

 

मैं - कुछ नही बस यूँ ही आए थे।

 

श्रुती - देखो शशांक आप कुछ छुपा रहे हो, इतना तो मैं आपको समझती हूँ।

 

मैं - क्या जानना है तुम्हे, ये डिप्रेस्ड है, मगर अभी सही है लेकिन कुछ चीजों पे इन्होने जबरदस्ती अपनी नकारात्मक ऊर्जा को हावी कर रखा है, ये इनकी रिपोर्ट है।

 

श्रुती उनकी रिपोर्ट पढ़ती है, और बोलती है।

 

श्रुती - अगर मैं इनकी ये प्रॉब्लम हल कर दूं तो !

 

मैं - कैसे

 

श्रुती - वो मेरे पे छोड़ दो

 

मै - ठीक है, लेकिन जो भी करोगी मुझे पता होनी चाहिए।

 

श्रुती - ठीक है, उसकी आप चिंता मत कीजिये, ये तो आप भी जानते हो कि मैं कोई काम लेती हूँ तो उन्हें पूरा भी करती हूँ।

लेकिन मैं ये सोच रही हूँ की, कहा से हल करूं इनकी ये दुविधा जिस मायाजाल में फसा है।

 

मैं - इनका जवाब तुम खुद ही निकालो, और ये तुम्हारी एक छोटी सी टेस्ट है, जो तुम्हे हल करना है।

 

श्रुती - ठीक है।

 

फिर श्रुती वहां से चली जाती है, वैसे मैं खुद ही चाहता था की ये केस श्रुती खुद हल करें और एकलव्य को एक अच्छा दोस्त मीले मैं जानता था श्रुती कर लेगी।

 

श्रुती जब होस्टल जाते समय बस स्टैंड पे थी तो वो सोच रही थी की शशांक ने कोई हिंट नही दिया तो मैं ये केस कहाँ से हल करूँगी वो इसी उलझन में होस्टल पहुंचती है,  मीनाक्षी देखती है और पूछती है।

 

मीनाक्षी - क्या हुआ अब तेरे को?

 

श्रुती - यार हम लोग जैसा एकलव्य के बारे में सोच रहे थे, वैसा नही है वो सदमे में है

 

मीनाक्षी - क्या?

 

श्रुती- हाँ वो उनके पापा और वो आए थे शशांक जी से मिलने, तो पता चला और वो केस मैने ले लिया, और मुझे समझ नही आ रहा कहा से हल करूं?

 

मीनाक्षी - उनके अतीत में जाके।

 

श्रुती - हाँ वो तो पता है, लेकिन जाऊं कैसे

 

मीनाक्षी - उनके ट्रांसफर सर्टिफिकेट से वो तो पिछले कॉलेज का होगा

 

श्रुती - अच्छा वो कैसे तुझे लगता है की ऐडमिशन डिपार्टमेंट उनकी T. C. देगा।

 

मीनाक्षी- अरे तू फिकर काहे को करती है मेरा दोस्त है ना, तो तू फिकर ही नहीं कर रे बाबा, रोहित है न वो करेगा

 

श्रुती - मतलब!

 

मीनाक्षी - उसे हैकिंग आती है वो कॉलेज के ऐडमिशन डिपार्टमेंट से उनकी फाईल की सॉफ्ट कॉपी निकाल के दे देगा।

 

श्रुती - हा अच्छा विचार है।

 

मीनाक्षी रोहीत को फोन कर के बताती है, और वो मान जाता है और कहता है कि एक घंटा दो।

दो घंटे के बाद वो मीनाक्षी को फोन कर के बताते है।

 

 रोहित - ये एकलव्य लखनऊ का रहने वाला है और ये लखनऊ विश्व विद्यालय मे पढ़ते थे आधी पढ़ाई छोड़ के यहाँ आए है।

 

मीनाक्षी- ठीक है शुक्रिया।

 

वो श्रुती को सारी बात बताते है

मीनाक्षी - अगर तुम्हें अगला कदम उठाना है, तो लखनऊ जाना होगा।  वहाँ से तुम्हें लिंक मिलेग!

श्रुती - ऐसा क्या कहा इन्होने?

 

मीनाक्षी उनको सब बात बता देती है, और वो लखनऊ को निकल जाती है, वहाँ जाने के बाद मेरा फोन आता है उनके पास।

 

मै- हेलो कहा हो तुम?

 

श्रुती - यार मै अभी लखनऊ मे हूँ, एकलव्य के कुछ बीते हुए अतीत को सुधारने आई हूँ।

 

मै- अच्छा तुम्हें लगता है की तुम सही कर रही हो वैसे भी वो खुदमे परेशान है।

 

श्रुती – देख यार हमे अभी समझे नहीं हो मै सब सही कर दूँगी ओके बाय।

 

और वो फोन काट देती है वहाँ से वो दो दिन के लिए एक होटल के लिए निकल जाती है।

 

मै थोड़ा परेशान होता हूँ फिर मै अभय को फोन करता हूँ,  मगर वो फोन नहीं उठा पता है।

 मेरे दिमाग मे उथल- पुथल चल रहा था, की ये लड़की है और अगर वहाँ पे किसी को पता चल जाएगा तो कहीं ये दिक्कत मे ना आ जाए।

 

तब मैने ड्राइवर को फोन क्या, और आर्मी कैंप को निकल गया, वहाँ मै अभय को मिला उनको सब बात बताया तो वो हसने लगा और बोला की। 

 

अभय - ये मुझे पता है मुझे तो ये भी पता है की उन्होने एकलव्य की जानकारी अपने दोस्त रोहित की मदद से निकाली है ।

 

मै - क्या?

 

अभय - श्रुती की फीस उनके पर्सनल खर्चे सब मै ही दे रहा हू, क्यूंकी वो खुद आर्मी अधिकारी है!

फिलहाल वो औफ़ ड्यूटी मे है, और वो कर्नल विजयकान्त सर की भतीजी है।

 

मै- तो ये सब फिर किया है?

 

अभय - चलो मै तुम्हें कुछ बताता हूँ ।

 

 

बात उस समय की है जब वो हरयाणा के गुड़गाँव मे वो अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी,  अचानक से एक आवाज आती है झगड़े की, तो श्रुती वहाँ पे पहुँचती है।

 

श्रुती - देखिये आप क्यों इन पर ऐसे भड़क रहे है।

 

बंदा - तू कौन है, जा अपना काम कर

 

श्रुती - आप होश मे नहीं है, अभी एक काम कीजिये आप घर जाइए।

 

बंदा - क्यूँ तुझे भी चलना है किया।

 

तो श्रुती को गुस्सा आ जाता है और वो कस के चांटा मार देती है, तो वो बंदा उनके ऊपर बंदूक टान देता है।

 श्रुती उनके कोनही पे कस के मार के बंदूक अपने हांथ मे ले - लेती है और फिर क्या वो बंदा बोलता है की 

 

बंदा- देख अभी तू मुझे नहीं जानता की मेरी पोलिस मे कितनी पहुँच है।

 

श्रुती - अच्छा तुम्हारी जान पहचान सिर्फ महाराष्ट्र पोलिस, उत्तर प्रदेश पोलिस, बिहार पोलिस, हरियाणा पोलिस मे होगी लेकिन तुझे ये नहीं पता मै क्या हूँ,  I am a Indian Army officer.

 

वेटर पोलिस को फोन करो, और पोलिस आके गिरफ्तार कर लेती है और श्रुति अपने दोस्तों के साथ घर को जा रही होती है तभी अभय का फोन आता है।

 

श्रुती मन मे सोचती है, की अभय सर इतनी रात मे फोन क्यों कर रहे हैं,  और फोन उठा लेती है।

 

श्रुती - जय हिन्द सर, बोलिए?

 

अभय- लो तुम्हारे पापा बात करेंगे।

 

विजय कान्त - हेलो श्रुती

 

श्रुती – हाँ पापा 

 

विजयकान्त - तुम  अभी कहाँ हों ?

 

श्रुती- मै अभी अपने दोस्तों के साथ हूँ, और घर को जा रही हूँ, आपको पता तो था की मेरा जन्मदिन है।

 

विजयकान्त- एक काम करो तुम आर्मी कैंप पहुँचो फिर बात करते है।

 

श्रुती अपने सभी दोस्तों को छोड़ के वो कैंप जाती है, तो वहाँ पे अभय और उनके पिताजी रूम पर इंतज़ार कर रहे होते हैं।

तो श्रुती देखती है, की चाबी मेरे पास है। 

तो मेरा रूम खुला कैसे अभी सुबह के 4:00 AM बज रहें हैं, तो वो बड़ी सतर्कता के साथ जाती है दरवाजे को खटखटाती है जैसे ही दरवाजा खोलते हैं  श्रुती के पापा होते हैं वो बोलती है की,

श्रुती - अरे पापा आप हद हैं, मै सोची पता नहीं कौन है।

 

विजयकान्त - तुमसे मिलने के लिए देखो कौन आए है, अंकल जी!

 

श्रुती- जय हिन्द सर

 

अभय- बेटा आज मै आपसे एक मेजर बन के नहीं एक पिता बन के आया हूँ, तुमने कहा था न की अगर कभी कोई जरूरी काम हो तो बताइएगा देहरादून मे।

 

श्रुती- हाँ कहा तो था मगर क्या हुआ अंकल जी।

 

अभय - वो सारी बात बताते है।

 

श्रुती - लेकिन मुझे इतने दिन की छुट्टी मिलेगी क्या?

 

विजयकान्त - देखो श्रुती हम एक डील करते है तुम्हे EFT LAW OF ATTRACTION का कोर्स करना है और मै एक काबिल आर्मी अधिकारी को नहीं छोड़ सकता क्यूंकी समीर को कुछ होगा तो ये परेशान रहेंगे आगे तुम्हारी मर्जी।

 

श्रुती - ठीक है मै करूंगी ये टास्क

 

विजयकान्त - तो तुम वहाँ एक सिविलियन बन के जाओगी तुम्हारा आर्मी और हम लोगों से कोई संबंध नहीं है,  ग्रेजुएशन की विद्यार्थी हो ऐडमिशन का ये देख लेंगे, और तुमहारा वो कोर्स भी।

 

वो लोग श्रुती को लेकर के चले जाते है।

 

ये थी कहानी शशांक जी और वो अभी लखनऊ  के DGP के घर पे हैं कोई होटल मे नहीं है।

 

मै- वहा, वहा क्या जबरदस्त योजना बनाया है आगे क्या ?

 

अभय - आगे क्या वो तो श्रुती जाने की एकलव्य को कैसे ठीक करना है, उन्ही सब के लिए तो लखनऊ गई है।

 

उधर श्रुती लखनऊ विश्वविद्यालय जाके एकलव्य के बारे में पता करती है, तो उन्हें जानकारी कुछ नहीं मिल पाता है, थक हार जाती है तो उन्हें याद आता है की मैं तो गलत नाम से पूछ रही थी , तो वो एक लड़की के पास आती है उन्हें बोलती है।

 

श्रुती - क्या आप किसी समीर को जानते ही समीर शेखावत?

 

वो लड़की और कोई नही निशा होती है, और निशा सोच में पड़ जाती है की ये कौन है, और क्यों पूछ रही है इतने साल हो गए!

 

निशा - हाँ जानती हूँ लेकिन आप क्यों पूछ रहे हो, कौन हो आप?

 

श्रुती - हेलो मै श्रुती हूँ और समीर की दोस्त हूँ।

 

निशा - कहाँ है वो और कैसा है?

 

श्रुती - फिलहाल तो वो ठीक है लेकिन थोड़ा भावनाओं में डूबा हुआ है, वैसे आप उनके बारे में कुछ बता सकते हो, की ऐसा क्या हुआ था उनके साथ ?

 

निशा- कहाँ है वो 

 

श्रुती -  कहाँ है माफी चाहते है लेकिन अभी मैं आपको नहीं बता सकती हूँ समीर ने मुझे मना कर रखा है।

 

निशा - रोते हुए बोलती है, हाँ मना क्या होगा लेकिन हम लोग सच्चाई बताने वाले थे, लेकिन तब-तक वो लोग निकल गए थे।

 श्रुती - कैसी सच्चाई?

 निशा - चलिए मैं आपको कुछ दिखाती हूँ।

 और वो मेघा के घर ले जाती है, श्रुती का हाथ पकड़ के उनके रूम में ले जाती है।

 मेघा की मम्मी - बेटा ये कौन है

निशा - ये समीर की दोस्त है, और समीर के बारे में पूछ-ताछ के लिए आई है तो मेघा से पूछना चाहती है।

 मेघा के मम्मी और पापा खड़े होकर हाँथ जोड़ के बोलते है की,

 मेघा के मम्मी पापा - बेटा आप यहां से जा सकते है, मेरी बेटी को इस बारे में कोई बात नहीं करनी है।

 श्रुती - देखिये आंटी जी अंकल जी आप परेशान मत होईए मै चीजों को सुधारने के लिए आई हूँ, प्लीज़ आप मेरा विश्वास कीजिये।

 मेघा के पापा - देखो समीर के दोस्तों के बारे में तो मत पूछो मुझे तो विश्वास ही नहीं रहा इनके दोस्तों पर तो आप निकलिये यहाँ से।

 उधर से मेघा बोलती है।

 मेघा - अब क्या होगा जब कुछ रहा ही नहीं समीर तो आया नहीं तो किसी को भेज दिया मैसेंजर के तौर पे हम लोगों के मजे लेने के लिए पूछने दीजिये जो पूछना है।

 बोलिये क्या पूछना चाहती है आप?

 श्रुती - अगर आप लोगों को आपत्ती ना हो तो क्या मैं बैठ सकती हूँ क्योंकी उठा तो दिया ही है सोफे पर से!

 मेघा - हाँ बैठिये।

 श्रुती - हेलो मैं समीर की डॉ हूँ और उनकी दोस्त भी हूँ, मैं ये जानना चाहती हूँ की ऐसा क्या हुआ था आप लोगों के साथ जो की वो लखनऊ छोड़ के अचानक ही चला गया?

 मेघा सारी बात बताती है और वो कहती है की उनके ग्लास में करण ने किसी को बोल के कुछ मिलवाया था वो नशा नहीं करता है।

 श्रुती - आप उस वेटर को पहचान सकती हो?

 मेघा - हाँ पहचान सकती हूँ 

 श्रुती - तो ठीक है आज रात की पार्टी मेरी तरफ से इस पार्टी में करण को भी बुलाइये।

 मेघा - वहां खतरा हैहम लोग बात नही करते है

 श्रुती - अच्छा तुम लोग बात नहीं करते हो लेकिन वो तो करता हैं न।

 श्रुति कॉल लिस्ट मैसेज लिस्ट दिखाती है, ये देख के चौंक जाते है वो सब!

मैं बहुत टेढ़ी चीज हूँ, क्या हूँ वो तो करण से मिलने के बाद पता चल जाएगा।

वो सब पहुंच जाते है उसी क्लब में जहां ये सब हुआ था तो मेघा वहां पे पुलिस वालों के साथ होती है लेकिन सिविल ड्रेस में।

 ये बात किसी को भी नहीं पता होता है, वहां DGP कल्याण सिंह जी भी होते है श्रुती की सुरक्षा के लिए।

 तब करण भी आता है मेघा श्रुती को इशारा करती है, और वो उसी वेटर के पास आती है फिर वीर उस बेटर के शर्ट पे कोल्डड्रिंक गिरा देते है, और वेटर चले जाते है, वाशरूम में वहीं श्रुती और मेघा भी आजाते है वाशरूम में।

 वेटर - मैम ये जेंट्स वाशरूम है।

श्रुती - वो तो मुझे भी पता है, गन बाहर निकाल लेती है मेरे को ये बता तूने उस जूस में ऐसा क्या मिलाया था जिनके बाद नशा हो गया।

 वेटर - मैम आप क्या बोल रही हो और ये गन लेकर आप कैसे आई 

श्रुती - बेटा हम ये अंदर लेकर कैसे आए वो छोड़, मेघा करण की फ़ोटो दिखा इस चूहे को।

 वेटर - ये है वो

 श्रुती - अब याद आया चल सब फट-फट बोल।

 वेटर सारी बात बता देता है, की उन्होंने किया दिया था।

 श्रुती - चल अब तू ये पकड़, और जो तूने समीर के साथ क्या था वहीं तू आज करण के साथ करेगा, अगर नही किया तो मेरे लोग आस - पास ही है तुझे शूट करने में देर नहीं लगाएंगे

 ये सब देख के मेघा डर जाती है, और बोलती है

 मेघा - क्या है ये सब?

 श्रुती - अभी तुम देखो तो 

 वो वेटर करण को वहीं ड्रग्स देता है, जब करन नशे में हो जाता है तो मेघा के कान में श्रुती बोलती है और मेघा उनके सामने जाते है तो करण मेघा से गलत व्यवहार करता है, तो श्रुती आ जाती है और उन्हें थप्पड़ मार के चिल्लाती है कोई बचाओ वहीं पे सब पोलिस वाले आ जाते है और कल्याण सिंह बोलते है।

 कल्याण - क्या हुआ मैडम?

श्रुति - ये इस लड़की के साथ बद्तमीजी कर रहा है

कल्याण- ये क्या बद्तमीजी है तुम्हारी 

करण कुछ बोलता उस्से पहले श्रुति करण को बेहोश कर देती है और बोलते है

 श्रुती - काम हो गया है, अंकल जी मेघा और उनके दोस्तों को घर पर सुरक्षित छोड़ कर आइये  मेरी आज सुबह की फ्लाइट भी है इनसे वो सारी बात निकलवाईये मुझे नहीं मालूम कैसे करेंगे समीर भी ड्रग्स की हालत में पकड़ाया था ये भी उसी ड्रग्स में है तो अब तो आप कर ही सकते हो?

 कल्याण सिंह- हाँ श्रुती बेटा

 करण जेल में पोलिस वालों के सामने सारा कुछ बोल देता है कैसे क्या-क्या किया था

 तो श्रुती फोन करती है अभय को और बोलती है की 

 श्रुती- अंकल जी लखनऊ का काम हो गया करण ने सब बोल दिया पोलिस वालों के सामने आगे क्या करना है।

 अभय - good अब कल्याण से बात करो और उन्हें थोड़ा टॉर्चर करो  अभी लेकिन तुम्हारे पास अब ज्यादा समय नही है, क्योंकि वो भी जेल में ज्यादा समय के लिए नहीं रख पाएगा तो जितनी जल्दी हो सके एकलव्य को आभासी दुनियां से बाहर निकालो और हाँ शशांक को सब पता चल गया है वो भी हमारे साथ है तो देख लो 

 

श्रुती - ठीक है सर जय हिंद सर

 दो दिन बाद।

श्रुती और मीनाक्षी योजना बनाते है।

जिस बस से एकलव्य घर को जाते है, उसी बस से हम भी जाएंगे और हम वहाँ उतरेंगे जहां वो उतरता है फिर उधर थोड़ा घूमेंगे और वापस आजाएंगे,

 ये लोग वैसे ही करते है फिर बस मे श्रुती को सीट मिल जाती है, श्रुती मीनाक्षी को आगे वाली सीट देती है और वो अपने पास की सीट खाली करवा लेती है।

 फिर एकलव्य से कहती है की।

 श्रुती - एलो एकलव्य आओ बैठो सीट खाली है,

 एकलव्य बस की साइड रूफ के पास देख कर इशारा करता है उसमे मराठी मे लिखा होता है महिलासाठी, श्रुती देखती है 

 श्रुती - ओह ये सब कुछ नहीं होता।

 वो उसको खिचने की कोशिश करती है लेकिन एकलव्य छुड़ा लेता है हाथ और वो खुन्नस भरी नज़र से देख के आगे हो जाता है, तो श्रुती मन मे सोचती है कितना नौटंकी है, इतना कौन इतराता है।

 

रात के समय जब एकलव्य किसी से बात  कर रहा होता  है फेसबूक चैट पे तो पुछते हैं की 

 

एकलव्य - यार कोई लड़की बैठने के लिए सीट ऑफर करे तो  क्या करना चाहिए।

 

चैट- उनके औफ़र को मान लेना चाहिए।

 

एकलव्य- अच्छा अगर ना माने तो 

 

चैट - तो उनके दिल को बहुत कष्ट पहुंचता है।

 

एकलव्य - ओह शीट!

 

और वो फसबूक पर श्रुती को सर्च कर के उनको मैसेज करते है।

 

 एकलव्य- हाय मै एकलव्य हू मै माफी मांगने के लिए मैसेज क्या हूँ तो आप मुझे माफ कर दो

 

एक बजे के आस पास श्रुती के मोबाईल पर संदेश आता है, तो वो चौंक जाती है उसमे लिखा था Eklavya A Silent Night.

 

श्रुती - आप एकलव्य हो क्या 

 

एकलव्य - हा 

 श्रुती - तो माफी काहे की मांग रहे हो।

 एकलव्य - मुझे आप सीट औफ़र किए थे और मैने लिया नहीं।

 श्रुती - अरे ठीक है, कोई नहीं मुझे कौनसा फर्क पड़ता है।

एकलव्य - फर्क पड़ना चाहिए जरूरी है।

 इतने में वो श्रुती को बाय बोल के ब्लॉक कर देता है, श्रुती कन्फ्यूज हो जाती है मुझे ब्लॉक क्यों कीया ऐसे, तो वो सोचती है कोई बात नही अगर तुम टेढ़े हो तो मैं भी वहीं हूँ।

 तो वो एक नया युसर आई डी बनाती है, और एकलव्य को रिकुएस्ट भेज देती है।

फिर एकलव्य एक्सेप्ट कर लेती है वो क्युटिपाई के नाम से बनाती है।

 

अब दोनों में बात-चीत का सिलसिला शुरू हो जाता है ऐसे ही कई दिनों तक चलता है फिर दोनों में विश्वास बढ़ जाता है, तो एक दिन श्रुती कहती  है की

 

श्रुती - चलो आज एक ऑनलाईन गेम खेलते है,

एकलव्य - गेम कैसा गेम 

श्रुती - कोई भी कहानी होगी एक लाईन में और एक लाईन तुम बोलोगे।

एकलव्य - ओके।

श्रुती - कॉलेज में डैशिंग सा हेंडसम सा लड़का था।

एकलव्य - उनका एक प्यारा सा ग्रुप था

श्रुती - उसमे एक लड़की थी, जिनको वो लड़का बहुत पसंद करता था

एकलव्य - लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था,

श्रुती- क्या?

एकलव्य - एक दोस्त ने ही धोका दे दिया।

श्रुती - फिर उसने वो कॉलेज छोड़ दिया।

एकलव्य- नही!... वो शहर वो दोस्त और हर वो चीज छोड़ दिया जिसमे उन सब की यादें थी।

श्रुती- फिर क्या हुआ?

एकलव्य - बस यहीं थी ये कहानी

श्रुती- ये तो अधूरी है, इनको पूरी करनी है?

एकलव्य - नहीं......ईतना ही है? Sorry...!

श्रुती- कोई नहीं ये कहानी मैं खत्म करूँगी

एकलव्य- देखो इसे पूरा करने की कोई जरूरत नही है।

श्रुती - खैर शुभ रात्री

 

वो दोनों सो जाते है, लेकिन श्रुती मन मे सोचती है, की इसको इनका प्यार मिलना चाहिए मजेदार बात ये थी कि श्रुती भी उनसे प्यार करने लगी थी।

 

तो वो अपने पापा को फोन करती है।

 

श्रुती - पापा कल मैं आप से मिलना चाहती हूँ कॉलेज में।

श्रुती के पापा- ओके

 

अगले दिन विजयकांत कॉलेज पहुंच जाते है और श्रुती भी आती है मिलने को दोनों ही शीतल रेस्टोरेंट को जाते है।

 

खाना खाने के बाद।

 

विजयकांत - बेटा तुम परेशान हो क्यों

श्रुती- पापा मैं समीर से प्यार करने लगी हूँ

विजयकांत- इत्ती सी बात बस तुम ये केस सॉल्व कर दो मै बात कर लूंगा अभय से।

श्रुती- आपने मुझे सब कुछ दिया है लेकिन मैं समझ नही पा रही हूँ!

विजयकांत- क्या?

श्रुती - मैं सोच रही हूँ की उन्हें उनका पुराना प्यार मिल जाए

विजयकांत- इमोशनल होक that's proud my daughter.

श्रुती- मगर दिल नहीं मान रहा है!

विजयकांत- बेटा तुम्हे पता है प्यार क्या है?

 

प्यार विश्वास है, एक खूबसूरत सा एहसास है, प्यार त्याग है प्यार के कोई शब्द नहीं है इसको शब्दों से हम तौल नही सकते है।

 

बेटा मुझे पूरा विश्वास है कि तुम जो भी करोगी सब सही करोगी।

 

श्रुती - अच्छा तो आप अगर समीर की जगह पे होते तो क्या करते क्या पहला प्यार अपनाते?

 

बिजयकान्त - देखो बेटा ये तो परिस्थिती बताती अगर ये हालत होती तो शायद नहीं क्योंकी आप जिनसे प्यार करते हो तो आपको उनसे शादी भी करनी पड़ती है, जब शादी से पहले ये हालत है तो शादी के बाद किया?

 

श्रुती - मुझे जवाब मिल गया लेकिन सोचने वाली बात ये है की क्या ये मेरा स्वार्थ नहीं होगा 

 

बिजयकान्त- स्वार्थ देखा जाय तो नहीं वो इसलिए क्योंकी तुम उसे कष्ट नही दे रही हो और तुम तो उन्हें सब बताओगी ही लेकिन अब ये केस जल्दी हल करो क्योंकि कश्मीर के एक केस में तुम्हे जाना है।

 

श्रुती- ठीक है।

 

जाते जाते वीजयकान्त बोलते है की।

 

बिजयकान्त - I think so तुम्हे रॉ जॉइन कर लेना चाहिए।

 

श्रुती - सोचती हूँ

 

श्रुती क्युटिपाय वाले आई. डी. से मैसेज करती है की हम आज मिलेंगे रात के 10:00 PM बजे।

 

अब वो ये मैसेज देख के कन्फ्यूज हो जाता है और बोलते है की मैं तैयार नहीं हूँ 

 

तो वो और किसी नम्बर से फोन करती है।

 

क्यूटिपाय- हेलो सायलेंट नाईट।

साइलेंट नाईट - कौन क्यूटिपाय?

क्यूटिपाय - हा आज हम मिल रहे है मै तुम्हे डेट दे रही हूँ।

साइलेंट नाईट - लेकिन मैं किसी से मिलता नहीं!

क्यूटिपाय - अरे परेशान मत हो, मुझे इतना तो पता है की तुम फट्टू तो नही हो ।आजाना वहां कोई नही होंगे मेरे और तुम्हारे अलावा।

साइलेंट नाईट - ओके ठीक है लेकिन कहाँ आना है ।

क्यूटिपाय - शितल रिफ्रेशमेंट मे

 

श्रुती शीतल रिफ्रेशमेंट में पूरी योजना बना लेती है, वहाँ एकलव्य के परिवार वाले विजयकांत और मैं या नी की शशांक शेखर भी मौजूद होते है।

 

जब एकलव्य आता है तो रेस्टोरेंट में पूरा अंधेरा-अंधेरा होता हैऔर ऊपर से एक लाईट टेबल पे आती है और आवाज आती है।

 

हेलो एकलव्य जी अब आप इस टेबल पे बैठ जाइए।

वो आवाज श्रुती का ही होता है।

 

श्रुती- एकलव्य देखो मुझे तुमसे कुछ कहना है, लेकिन मैं पहले तुम्हे एक सच से अवगत कराना चाहती हूँ मुझे माफ़ कर दो

 

एकलव्य - क्या मतलब क्या मैं समझा नहीं?

श्रुती- मैं ही क्यूटिपाय हूँ

 

अब एकलव्य काफी गुस्से में आजाता है और बोलता है तुमने मुझे धोका दिया

श्रुती - नहीं

एकलव्य - तो ये सब क्या है

श्रुती - देखो मैं तुमसे प्यार करती हूँ, और तुम कब तक अपनी जिंदगी से भागोगे।

 

उन दोनों में काफी बहस वाजी होती है।

 

श्रुती - अच्छा तुम्हे लगता है, तुमसे कोई प्यार नहीं करता ठीक है, तुम्हे पता है की तुम्हारे पापा ने तुम्हारे लिए क्या किया है कितने त्याग किये है अरे ये रोने पे आ गए थे मेरे आगे हाँथ जोड़े थे तुम्हारे पापा यहां मौजूद है।

 

अंकल जी!

 

तुम्हारी माँ तुमसे कितना प्यार करती है तुम्हे पता है अरे जब तुमने बोला कि मुझे यहाँ से ले चलिए वो कुछ सोचे बिना लखनऊ से पुणे लेकर आ गए तुम्हे जैसा रहना था वैसा रहने को दिए वो भी है यहां देखो उनकी आंखों में।

 

आंटी जी!

 

और भी लोग है जिन्होंने तुम्हारे पापा को संभाला है, तो स्पॉट लाईट सब के ऊपर आजाती है।

 

और सबसे बड़ा सच जो कि मैने बताया ही नही तुम्हे मालूम है मैं कौन हूँ तो ये देखो आर्मी यूनिफॉर्म में होती है श्रुती और बोलती है मैं मेजर श्रुती हूँ और सुनों तुम्हारे पापा के एक बार बोलने पर मैं सुबह 4:00Am बजे पुणे आती हूँ और तुम्हारे दिमाग से ये जो कचड़ा है इनको निकालने के लिए ये सब करती हूँ, तुम्हारे लिए लखनऊ जाती हूँ और तुम्हारे दोस्तों की मदद से करण तक पहुंचती हूँ और वैसे ही जैसे तुम्हे फसाया वैसे ही मै उनसे उनके गुनाह कुबूल कराती हूँ।

 

क्या ये सब तुम्हे नाटक लगता है?

 

एकलव्य - मैं क्या करूँ ये बताओ?

 

श्रुती - नॉर्मल होके देखो ये ईश्वर ने जो जिंदगी दी है हर किसी को नहीं मिलता है, इनका सही इस्तेमाल करो इनके साथ खेलो नहीं तुम्हारे मम्मी पापा भाई बहन सब है इन लोगों के लिए जियो और क्या।

 

एकलव्य अचानक बेहोश हो जाता है, और मैं नब्ज देखता हूँ बोलता हूँ की

 

आप लोग परेशान मत होइए ये अभी ठीक है थोड़ा सा सदमा लगा है और कुछ नहीं।

 

और मैं उनको उनके घर ले आता हूँ, वहां पे सब लोग होते है डॉक्टर को फोन करते है वो सिटी स्कैन करते है  तो पता चलता है की इन्हें मल्टीपर्सनैलिटी डिसऑर्डर हो गया है एकलव्य के नाम से तो श्रुती बोलती है की

 

श्रुती - शशांक तो क्या इनका कोई सॉल्यूशन नहीं हूं।

मैं - देखो इनके सदमे को ठीक किया जा सकता है अब क्योंकी इनका ये मांस भर गया है दिमाग का  शायद हो जाए सही

 

श्रुती - हिप्नोटिज्म करके उन्हें पूरा सही कर देता है और वो बिल्कुल ठीक हो जाता है, होश में आने के बाद मम्मी पापा के गले लगता है और श्रुती को देख के स्माईल करते है ।

 

और जिंदगी फिर से सही चलने वाली होती है कि मैसेज आता है श्रुती, अभय और विजय कांत के पास और वो मैसेज रक्षामंत्रालय आते है अर्जेंटली तीनों को दिल्ली बुलाते है।

 

आखिर ऐसा क्या होता है उस मैसेज में रक्षामंत्रालय क्यों उन्हें दिल्ली बुलाना चाहता है।


 सब का जवाब एकलव्य के तीसरे अध्याय में मिलेगा थोड़ा इनतजार कीजिये।।

 

*शशांक शेखर*

*8299640275*


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