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एकलव्य (प्यार कोई खिलौना नही) अध्याय 1

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लखनऊ शहर की जज़्बात बड़े निराले हें जनाब, ये जिस राज्य में बसता है। वो है उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश जो है, उनको तो आप जानते ही हो भारत देश की धड़कन है जनाब। लखनऊ में एक यूनिवर्सिटी है, जो आई. टी चौराहे के पास हैं ,   लखनऊ विश्वविद्यालय..! इसी विश्वविद्यालय में एक ग्रुप था जिसमें पांच दोस्त थे... 1 वीर 2 समीर 3 निशा 4 मेघा 5 सनी ये ग्रुप हसी मज़ाक यारी के नाम से मशहूर था लेकिन इसी ग्रुप में जोड़े (couple) भी थे, समीर और मेघा दोनो ही एक दूसरे को प्यार करते थे, ये बात इस ग्रुप के सभी लोगों को पता थी। इसी आई. टी. चौराहे के पास, एक चाय कॉफी की छोटी सी दुकान थी।  जहाँ पे ये बच्चे आते थे लन्च के समय में। एक दिन की बात है , जब वो लोग चाय की दुकान पे थे, तो सनी समीर को बोलता है। सनी- समीर आज तो तू शाम को किसी को लेने जाने वाला था क्या हुआ? समीर- हा सनी यार, वो मेरे पापा के दोस्त रहते है ऑस्ट्रेलिया में तो उनका बेटा आ रहा है। हालांकी बचपन मे हम दोनों एक ही क्लास में थे, किसी कारण से वो लोग बाहर शिफ्ट हो गए, लेकिन उनके बेटे को भारत देश से कुछ ज्यादा ही लगाव है। तो वो यहीं शिफ्ट हो रहा है, और ...

एकलव्य (राष्ट्र और अध्यात्म के प्रती झुकाव) अध्याय - 3

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एकलव्य   अब   एक   अच्छी   कंपनी   में   काम   कर   रहा   था ,  और   वो   पेशे   से   एक   अच्छा   चित्रकार   था। वो   भी   तकनीकी   चित्रकार   था ,  वो   अपने   बुरे   अतीत   को   पीछे   छोड़   चुका   था। उन्हें   अब   किसी   भी   बात   का   कोई   फर्क   भी   नही   पड़ता   था ,  लेकिन   अभी   भी   एक   ऐसी   चीज   थी   जो   उन्हें   अंदर   से   खो खला   कर   रही   थी। उनके   सर   के   अंदर   मांस   फूल   रहा   था ,  जो   कि   एकलव्य   को   कमजोर   कर   रही   थी।   लेकिन   जो   हौसला   श्रुति   ने   दिया   था ,  उस   हौसले   के   आगे   ये   बीमारी   जीरो   थी। ...