एकलव्य (राष्ट्र और अध्यात्म के प्रती झुकाव) अध्याय - 3
एकलव्य अब एक अच्छी कंपनी में काम कर रहा था, और वो पेशे से एक अच्छा चित्रकार था।
वो भी तकनीकी चित्रकार था, वो अपने बुरे अतीत को पीछे छोड़ चुका था।
उन्हें अब किसी भी बात का कोई फर्क भी नही पड़ता था, लेकिन अभी भी एक ऐसी चीज थी जो उन्हें अंदर से खो
खला कर रही थी।
उनके सर के अंदर मांस फूल रहा था, जो कि एकलव्य को कमजोर कर रही थी।
लेकिन जो हौसला श्रुति ने दिया था, उस हौसले के आगे ये बीमारी जीरो थी।
"कहते है, कहते है हौसला हो कुछ करने की।
तो खुदा भी उन्हें आशीर्वाद देने आ जाता है।।"
उनका दफ्तर ज्यादा बड़ा नहीं था छोटा सा था, उनके बॉस का नाम भोसले था।
जिनको वो अपना गुरु मानते थे, और एकलव्य के अच्छे स्वभाव पे भोसले सर उन्हें अपना छोटा भाई मानते थे।
जो भोसले जी थे वो काफी पॉवरफुल व्यक्तियों में से एक थे जिनकी वजह से वो काफी सहनशील, बहादुर और
कठिन से कठिन फैसले लेने वालों में से थे राष्ट्रीयता के प्रति उनको झुकाव सजग था उन्होने एकलव्य के अंदर
कुछ ऐसा देखा था जिनकी वजह से वो इन्हें बहुत मानते थे।
हालांकी एकलव्य का वेतन बहुत कम था फिर भी उन्हें इतने कम वेतन में कोई तकलीफ़ नही होती थी।
वो अब आर्मी कैम्प अपने परिवार में नहीं रहता था, क्योंकि उन्हें कुछ अच्छा करना था और बड़ा जिस वजह से
उन्होने एक सुंदर संघर्ष से भरी दुनियाँ बना ली थी।
वो सुबह चार बजे उठ जाते थे, और सोसाइटी कम्पाउण्ड में 2 राउंड दौड़ते थे फिर योग करते थे,
6:00AM बजे वो अपने रूम में आजाते थे, हाथ मुँह धोके वो कुर्सी पे बैठ के रात में किये हुए काम को रिवाइज़
किया करते थे ताकि उनका पूरा समय अच्छा बीते 9:00 AM से 6:00 PM तक का उनका ऑफिस होता था।
रात को 8:00
PM बजे वो महान वीरों की कहानी पढ़ा करते थे और उन पर खोज भी करते थे।
ये सब वो इसलिए पढा करते थे, ताकि वो नकारात्मक चीज़ो को पूर्ण रूप से भूल सके जिस वजह से वो काफी
परिपक्व हो रहा था।
भारत देश मे जहाँ एक नया राष्ट्रभक्त की नींव रखी जा रही थी तो वहीं भारत मे कुछ असहनीय शक्तियां बुरी
ताकते भी पैदा हो रही थी।
जिनकी नीँव 11 साल पहले ही रखी जा चुकी थी, जिनका उद्देश्य था ईश्वर ने ये श्रष्टी को कैसे बनाया है वो जानना।
मतलब ये की कुछ असामाजिक धनलोभी विश्व के बड़ी कम्पनी के बड़े-
बड़े लोग मीले थे जिनको ये अहसास नहीँ था।
कुछ समय पहले जब एकलव्य शीतल रेस्टोरेंट में बेहोश हो जाता है तो सब लोग उन्हें घर पे लेकर आजाते है,
इधर पता चलता है की इतना गहेरे सदमे की वजह से माथे के अंदर मांस बढ़ गया है और श्रुती कैसे भी कर के
एकलव्य को नॉर्मल कर देती है।
होश में आते ही एकलव्य अपनी मम्मी और पापा से चिपट जाता है, और फूट-
फूट के रोने लगते है बोलते है मुझे माँफ कर दीजिये मै अब परेशान नहीं करूंगा
एकलव्य के मम्मी-पापा – नहीं बेटा आपने कोई परेशान नहीं किया है, आप अच्छे बच्चे हो।
और उन्हे बाहर लेकर आते है एकलव्य के भाई - बहेन भी खुश हो जाते है फिर किया एकलव्य अपनी सारी
नकारात्मक चीजों को खत्म कर देता है।
ऐसा सब को लगता है की उसका नया जीवन हुआ है, और वो खुश है।
वहीं तीनों के पास संदेश आता है रक्षामंत्रालय से और वो तीनों रक्षमन्त्रालय को निकाल चुके होते है
एक दिन एकलव्य नहाँ के निकला ही था अचानक से वो बेहोश होके गिर जाता है एकलव्य का भाई देख लेता है
और बोलता है चिल्लाता है भैया और जाके संभालता है तो परिवार के सभी लोग आजाते है।
फिर अस्पताल लेकर जाते है, वहीं श्रुति भी आजाती है बोलती है
श्रुति- एकलव्य कैसा है सही तो है, कहाँ है वो सही है न
अभय- हाँ बेटा सही है वो अभी ICU में है और डाक्टर देख रहें है।
उसी समय डाक्टर बाहर आते है,
डाक्टर – अभय सर आप आइये मेरे साथ
फिर वो डाक्टर के साथ उनके केबिन मे चले जाते है, और पुछते है की किया हुआ डाक्टर सब - सहीं है न कुछ
घबराने वाली बात तो नहीं है
डाक्टर - अभय सर एकलव्य के माथे के अंदर माँस बढ़ रहा है जिसकी वजह से वो बहुत बड़ी तकली
मे आ सकता है।
वहीं श्रुति पहुँच जाती है-
श्रुति – कैसी तकलीफ हो सकती है।
डाक्टर – श्रुती मैडम वो मर भी सकता है कोमा में भी जा सकता है।
अभय – इसका कोई हल है क्या?
डाक्टर – हाँ है पर उसमे बहुत खर्चा है और वो इकूपमेंट हमारे पास नहीं है ऑपरेशन करना होगा
श्रुती – क्या ऑपरेशन के अलावा कोई हल
डाक्टर – विज्ञान मे तो नहीं है पर अध्यात्म मे जरूर है।
श्रुती – अंकल जी अब समझ मे आ गया आखिर किया करना है
अभय – क्या करोगे बेटे
श्रुती- आपको मेरे पे पूरा विश्वास है न
अभय – हाँ है बेटा पूरा विश्वास है
फिर एकलव्य अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाता है और घर चला जाता है, दो दिन वो आराम करता है उसके बाद
वो श्रुती से मिलने को चला जाता है, श्रुती आर्मी के जवानों को ट्रेनिंग दे रहीं होती है एकलव्य को आते देख वो
बोलती है की
श्रुती – एक मिनट मे आती हूँ।
आर्मी जवान – जी मैडम
और वो वहाँ से निकलके सीधे एकलव्य के पास जाते है।
श्रुती – हेलो समीर
एकलव्य – श्रुती मैडम आप मुझे एकलव्य ही बुलाये न
श्रुती एकलव्य का काँन पकड़ के बोलती है,
श्रुती – मै तुझे मैडम लगती हूँ एक तो इतना सब-कुछ किया वो भी मैडम बुलवाने के लिए ?
एकलव्य – किया हुआ तो हमने ऐसा किया बोल दिया।
श्रुती - ज षडप
एकलव्य - अरे किया हुआ?
श्रुती - फिर!
एकलव्य - अच्छा ठीक है नहीं बोलूंगा मैं।
श्रुती - हाँ हाँ बोल मत देना।
एक्लव्य - अरे काँन तो छोड़ दो ?
श्रुती - ओह सॉरी
एकलव्य - कोई नहीं वैसे कोई यहाँ पे सही जगह नहीं है ?
श्रुती - हाँ है न, कैंटीन ।
एकलव्य - थोड़ा सोचता है और अपने सर पे हाँथ घुमाता है इधर-उधर देख के बोलता है चलो फिर।
वो दोनों आर्मी कैंटीन आजाते है वहाँ पे श्रुती दो चाय का ऑर्डर देते है, फिर वो दोनों एक जगह पे बैठ जाते है।
श्रुती - हाँ एकलव्य आज इधर कैसे?
एकलव्य - कुछ नहीं ऐक्चुअली तुमने करण के साथ क्या किया है?
श्रुती - किया ही तो कुछ नहीं करना है उसकी चिंता तुम मत करो।
एकलव्य - कहाँ है वो?
श्रुती - मेरे कष्टडी में है क्यों आज तुम क्यों पूछ रहे हो?
एकलव्य श्रुती के हाँथ में अपना हाँथ रखता है और बोलता है की,
एकलव्य - देखो श्रुती तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और अब और नहीं करो मै तुम्हारा ऐहसान नहीं चुका
पाऊंगा।
श्रुती- यार ऐसा कुछ नहीं है वो मेरे पापा और तुम्हारे पापा अच्छे दोस्त है, इसके अलावा मुझे कुछ एक्सट्रा भी
करना था ये सब बात है, और तुम सुनाओ?
एकलव्य – कुछ सीजें मुझे तुमसे क्लियर करना है।
श्रुती – क्या?
एकलव्य – करण को छोड़ दो क्योंकी इनकी हार तब होगी जब मै कुछ हो जाऊंगा जिंदगी मे आप चार बात को
हमेशा ध्यान रखना की जब आप अच्छे रास्ते पे चलते हो तो बहुत सारे लोग आपको नेगलेक्ट करेंगे, दूसरा जब
आप कोई बड़ा काम करोगे लोगो की बिसाद हिला दोगे तो लोग आपको झूठा साबित करेंगे, फिर भी आप आगे
बढ़ते हो तो लोग आपके चरित्र पे उंगली उठाएंगे, आप अपना काम करते रहो चौथे नंबर पे वो सब मिट चुके होंगे
और आप अपनी जगह पे पहुँच चुके होगे।
ये बात मै नहीं कहे रहा हूँ, श्रुती ये बात राष्ट्रपुरुष स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है।
और वो स्वामी विवेकानंद जी की किताब निकालते है और बोलते है की जिस दिन मै चौथे नंबर पे पहुँच जाऊंगा
उसी दिन ये करण मेरे से हार चुका होगा।
श्रुती – यार ये बात सुन के तो मजा आ गया किया हो तुम आखिर इस तरह की बात सुन के मै तो धन्य हो गई,
यार तुम्हारा अपने भविष्य को लेकर इरादा क्या है?
एकलव्य – कुछ नहीं बस अपने पैरों पे खड़ा होना चाहता हूँ, और इस राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहता हूँ।
श्रुती – तो क्या तुम आर्मी जॉइन करना चाहते हो?
एकलव्य – नहीं मगर पता नहीं मगर उसके लिए मुझे एक अच्छी सी नौकरी चाहिए और मै अकेले रहना चाहता हूँ
क्यूंकी अकेले रहे के मै हर वो काम कर सकता हूँ जो मुझे करना चाहिए।
श्रुती – मगर अभी तुम सही हुए हो और तुम अभी से ही अलग रहना चाहते हो फैमिली को तुम्हारी जरूरत है
एकलव्य क्यों नहीं समझते हो।
एकलव्य – कुछ नहीं बस समझता हूँ सब मुझे थोड़ा समय दो प्लीज़ मेरी भावनाओं को समझों मुझे भी कुछ
करना है ज़िंदगी में।
श्रुती – ठीक है मेरी भी शर्त है फिर।
एकलव्य – कैसी शर्त ?
श्रुती – तुम अपनी ज़िंदगी के तीन महीने मुझे दोगे जिसके उपरांत मै जो भी कहूँगी वो तुम्हे करना होगा?
एकलव्य कुछ सोचता है और बोलता है,
एकलव्य – ठीक है लेकिन मै इंटरव्यू वागेरा दूंगा तो तुम मुझे सहयोग करोगी?
श्रुती – ठीक है मंजूर।
एकलव्य – मुझे करण से मिलना है ?
श्रुती करण के पास लेकर जाते है करण श्रुती के ही घर मे एक कमरे में बंद होता है, श्रुती उस रूम का
दरवाजा खोलती है।
श्रुती – करण देखो कौन आया है तुमसे मिलने को जिसको तुमने इतनी तकलीफ दी वही आया है
तुम्हें छुड़ाने को करण
करण – श्रुती तुमने ठीक नहीं किया मेरे साथ?
श्रुती – अच्छा जो तुमने किया फिर वो किया था, तुम एक बार इधर तो देखो सब समझ आजाएगा।
करण एकलव्य की तरफ देखता है,
करण - समीर तुम, क्यों आए हो ?
एकलव्य – श्रुती यार मुझे इनसे बात नहीं करनी है इसको छोड़ दो और इस पत्र मे लिखा है इसको बोल दो।
श्रुती – पत्र खोल के बोलती है की चिंता मत करो करण जो दर्द तुमने मुझे दिया है, वो सब मै भूल चुका हूँ और
तुम जा सकते हो मुझे तुम्हारे प्रती किसी भी तरह की नाराजगी नहीं है।
तुम मेघा से शादी कर लो क्योंकी वो मेरे लिए बनीं ही नहीं है अगर मेरे और उनमें प्रेम होता तो वो
मुझे समझती ऐसे मेरे पे शक नहीं करती तुम शादी कर लो उनसे खुश रखोगे तुम उनकों और उनसे कहे
देना की मै उनकी जिंदगी उन सब की ज़िंदगी से बहुत आगे निकल चुका हूँ कल को किया करूंगा वो मुझे
नहीं पता मगर जो भी करूंगा अच्छा ही करूंगा।
मगर ज़िंदगी मे एक बात ज़रूर याद रखना मेरे को लेकर के अबसे-
" हम ऐसे कांटों से बेहद प्यार करते हैं,
जिन्होनें हमारे दिल की भावनाओं का खून किया।
और आज उसी खूनी खेल ने,
हमारा दिल फूल सा बना दिया॥"
और मै मेघा को भूल गया हूँ क्योंकि उनकी जगह किसी और ने ले लिया है, जो की मुझे समझती है
और साथ ही साथ खुद को भी।
श्रुती की आँखों मे आँसू आजाते है, और वो एकलव्य के गले चिपट जाती है जैसे कोई
प्रेमी जोड़े पहली बार गले लगते है।
“क्या दस्तूर है,
किया दस्तूर है ज़िंदगी का।
आज कोई और था,
तो कल कोई और रहेगा।
दोस्त ! हम जिनसे मोहोब्बत करते है,
अगर वो उस मोहोब्बत का गला घोंट दे।
तो बड़ी तकलीफ होती है मित्र,
मगर उसी मोहोब्बत को दवा लगाने कोई दूसरा आजाए।
तो डर भी लागने लगता है,
की कहीं ये मेरी मोहोब्बत को अपाहिज न बना दें॥
फिलहाल एकलव्य को कुछ इसी तरह का डर भी था, लेकिन कहीं न कहीं उन्हे अपने परिवार पर विश्वास भी था।
कुछ समय के बाद एकलव्य के पास कॉल आता है, वो कॉल एक कम्पनी का होता है।
उनको पिंपरी-चिंचवड़ मे एक छोटी सी कंपनी मे काम मिल चुका होता है, वो चिंचवड़ के एक छोटे से
सोसाइटी मे रहे रहा होता है।
उनका घर देशभक्तों के किताबों से भरा हुआ होता है कई सारे देशभक्तों के व्यक्तित्व पे रिसर्च करता है उनमे से
उन्हे दो लोगों का चरित्र अत्यधिक पसंद था।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस और स्वामी विवेकानंद जी इन दोनों की आत्मकथा उनके ज़हेन में घर कर गई थी।
वो इनके बारे में और भी बहुत कुछ जानना चाहते थे तो वो इन विषयों को लेकर के कुछ पुरातत्त्ववेत्ता
( Archaeologist ) से संपर्क करने लगें ताकी वो और भी समझ सके।
उधर श्रुती, अभय और विजय कांत रक्षामंत्रालय पहुँचते है और वो प्रधानमंत्री जी के दफ्तर में होते है,
प्रधानमंत्री जी – मैने आप लोगों को इसीलिए यहाँ बुलाया है अचानक से क्यूंकी देश मे एक बहुत बड़ी विपत्ति
आने
वाली है जिसको रोकना बहुत ज़रूरी है।
अभय – कैसी विपत्ति?
उधर से रघुवंशी जी आते है, रघुवंशी रक्षामंत्रालय के अध्यक्ष होते है और प्रधानमंत्री जी
के सलाहकार भी होते है।
रघुवंशी – कुछ आपत्तीजनक लोगों को देखा गया है और उनकी डिमांड है मोस्ट पावर आतंकवादी
अब्बू हवी को छोड़ना और सबसे मज़ेदार बात ये है की अभिमन्यु वहाँ पहुँच गया है क्यूंकी उन लोगों
के पास कुछ
अधर्मी शक्तियाँ है ये देखो!
अभिमन्यु ये एक सुपर हीरो होता है, जो मासूमों की रक्षा करता है और बुरे लोगों को दंडित करता है,
इनके ऊपर साक्षात भोलेनाथ का आशीर्वाद भी
होता है।
इनके दिल के पास सात ऋषियों की
ताकत होती है जिनकी वजह से ये सुपर हीरो होता है।
विजयकान्त – ये बंधक कहाँ बनाएँ
है?
रघुवंशी – लखनऊ मे एक स्कूल में
बनाएं है।
प्रधानमंत्री जी – वो विद्यालय
हमारी पार्टी का है, कुछ भी करो
लेकिन उन बच्चों को कुछ भी नहीं होना चाहिए।
श्रुती कुर्सी पर से उठती है और
स्क्रीन के पास जाके बोलती है की
श्रुती – सर उन बच्चों को कुछ
भी नहीं होगा ये आप मुझपे छोड़ दीजिये।
मुझे दुबारा से लखनऊ जाना होगा।
मेरे पास एक योजना है, फिर श्रुती योजना बताते है।
उधर अभिमन्यु जो की सुपर हीरो होता है, वो विद्यालय के अंदर पहुँच चुका होता है मीडिया अभिमन्यु
की तारीफ करते है, कहते है हमारा सुपर हीरो
आ गया है अब बच्चों को बचा लिया जाएगा।
अभिमन्यु टहेलता रहता है उधर से एक एलियन हमला करता है, अभिमन्यु को आभास होता है और
वो दीवार पे पैर रख के एलियन को बैक किक मारता है, और कहता है-
अभिमन्यु – ना बच्चू अभी
तुम्हें और सीखने की ज़रूरत है।
उसी वक्त उसे श्रुती दिखाई देती
है AK47 के साथ और मन में कुछ सोचता है फिर वो
श्रुती के पास आजाते है।
अभिमन्यु – क्यूँ मेजर श्रुती
ये तुम लोगों की जगह नहीं है, यहाँ
सुपर-पावर्स है तुम एक आम लड़की हो।
श्रुती – देख अभिमन्यु तेरे पास
सुपर-पावर्स भलई हो मगर कोई भी लड़ाई सुपर-पावर्स से नहीं अकल से लड़ी जाती है।
उसी वक्त कई एलियन उन दोनों को
घेर लेते है,
अभिमन्यु – अच्छा महोतरमा जी अब
इनसे कैसे बचोगे अब यहाँ तुम्हारी अकल नहीं हमारी अकल काम आएगी।
अभिमन्यु श्रुती के कमर पे हांथ रख के चखरी की तरह नाचते है एक बार फिर वो दोनों एक - दूसरे के उल्टे
डाइरेक्शन मे होके एलियन को मारते है फिर वो दोनों उस कमरे मे पहुँच जाते है वहाँ से निकलने के बाद वहाँ
और उन सब बच्चों को बाहर निकाल लेते है, अभिमन्यु मे अकड़ होती है मगर उनमे अकड़ पहले नहीं होती है
वो अकड़ बाद मे आने लगती है क्यूंकी उनके अंदर एक बुरी ताकत होती है जो की एलियन के राजा के
द्वारा रचा गया साजिश था।
अचानक से मीडिया की नजर से
अभिमन्यु विद्यालय के अंदर जाता है श्रुती देख लेती है, और वो उनके पीछे – पीछे चली जाती है।
अभिमन्यु एक कमरे में चला जाता है और वो चिल्लाने लगता है ये हरकत श्रुती सुन लेती है तो उन्हे
समझ नहीं आता है वो कुछ सोचने लगती है और अभिमन्यू – अभिमन्यु आवाज़ लगाती है अचानक से
अभिमन्यु गेट खोलता है और बाहर आजाता है।
चुप-चाप वहाँ से निकल जाता है
श्रुती सोचती है सारे अजीब लोग मेरी ज़िंदगी मे ही मिले है किया?
उधर एकलव्य कुछ ऐसे व्यक्तियों के संपर्क में आने लगे जिनके साथ बात चित करने से उनकी
सोचने की छमता बढ़ने लगी और वो ज़िंदगी मे समझदार भी हो गया ऐसे ही समय बीतता गया
एक बार की बात है एकलव्य के पास अभिलाष आए और वो बोले की मेरा एक काम है सोशल
मीडिया का एड्स बनाना है और
एकलव्य को पैसे की जरूरत भी थी तो उनहोने हाँ कहे दिया।
अभिलाष एकलव्य की कंपनी मे
मार्केटिंग का काम किया करता था कुछ कहा सुनी हुई थी,
भोसले सर से तो वो काम नहीं
करते थे।
तो एक दिन भोसले सर को पता चल गया तो एकलव्य को बुलाए और बोले की एक काम करो तुम
अपनी कंपनी खोल लो और जो
भी पैसे होंगे वो मै देदूंगा
एकलव्य- सर ऐसा क्या हुआ जो आप
ऐसे बोल रहे है?
भोसले सर – नहीं एकलव्य तुमसे
कुछ नहीं हुआ।
एकलव्य – सर एक बार बताइये तो
क्या हुआ आपको?
बहुत मसक्क्त के बाद अभिलाष की करतूत बताए उनको कैसे धोका देकर के कंपनी अपनी
अभिलाष ने खड़ी किया है।
इस से एकलव्य को एक बात ज़रूर
समझ आ गया की ऐसे किसी भी कंपनी के पूर्व कर्मचारी का काम नहीं करना चाहिए।
एकलव्य रात मे सो रहे थे अचानक से उनको एक सपना आता है, साक्षात कोई सकारात्मक ऊर्जा उनको अपने
पास खींच रही थी मगर वो समझ नहीं पा रहा था की ये है
क्या?
और ॐ की आवाज़ आ रही थी अचानक से उनकी नींद टूटी और वो उठा तो घड़ी मे सुबह के चार बज रहे थे,
किचन मे जाके एक गिलास पानी पिये और आके दुबारा से सो गया वो सुबह उठते है तो मोबाईल देखते है फिर
पता चलता है की आज तो किसी से मिलने को जाना था और मै यहाँ हूँ फिर वो निकलता है जिनसे उन्हे मिलना
था वो मनीष होते है मनीष एक कंपनी के मालिक होते है वो खुद नेताजी सुभाष बाबू पे गहन अध्यन करते है
साथ ही साथ अध्यात्म
में भी लीन रहते है
एकलव्य – हेलो भैया।
मनीष – आजा, वहाँ पे किताब है अशोक टंडन की गुमनामी सुभाष और सुन वहाँ की किसी भी
चीजों को हाँथ मत लगाइयों क्योंकि वो मेरी निगाहों में है।
एकलव्य वो किताब लेते है और फिर दोनों मे बात चित हो जाती है एक घंटे तक बात – चित होती है, अगले
दिन भोसले सर को बताते है और भोसले सर खुश हो जाते है ऐसे ही वो बहुत चीजों मे खोया रहता है,
एक दिन वो कई राजाओं के गुरुओं के बारे मे भी पढ़ रहे थे, तो वो सोचता है की हमारे भारत देश के कई
राजाओं के गुरु थे मगर विष्णुगुप्त चाणक्य जी काफी तेज़ तर्रार गुरु थे जिन्होने एक हटी बालक को
राज सिंहासन पे विराजमान कर दिया यार ऐसे गुरु सुभाष बाबू को क्यों नहीं मिले अगर मिले होते तो वो
ही भारत देश
के राष्ट्र पुरुष होते और हमारे प्रथम प्रधानमंत्री भी।
वो यहीं सब सोच रहा था और चाणक्य
जी को समझने की कोशिश कर रहा था।
एकलव्य यहीं सब पे रिसर्च करने लगता है, धीरे-धीरे उन्हे कुछ अध्यात्म की चीजें भी समझ आने लगी थी, और
उनका झुकाव राष्ट्र हित मे तो हो ही रहा था उतना ही अध्यात्म के बारे मे भी समझ आने लगा था,
और वो चाणक्य की कूटनीतिक को भी समझने लगा था, अब उन्हे अपना टार्गेट समझ मे आने लगा था।
एकलव्य ने फिर योजना बनाई और सबसे पहली उन्होने और सबसे पहली उन्होने
अपनी नौकरी छोड़ी, और वो राष्ट्र और आध्यात्मिक रिसर्च मे लीन हो गया।
इस तरह से उनके शरीर में एक नई ऊर्जा जागरूक हुई, ऐसे कई दिन बीत गए,
उधर अभिमन्यु के अंदर बुरी शक्ति हावी हो रही होती है,
जिस वजह से अभिमन्यु के अपने परिवार बिखर रहे थे, मगर अभिमन्यु नहीं
समझ पा रहे थे की असुर लोग किया योजना बना रहे है।
मगर भोलेनाथ तो आखिर भोलेनाथ है, वो अपनी कुछ अलग ही लीला रच रहे थे,
हालांकि अभिमन्यु की ज़िंदगी मे तो बोलेनाथ ने पहले से ही बहुत
सारी उथल-पुथल कर रखे थे मगर भोलेनाथ तो समझ चुके थे अभिमन्यु के
अंदर डेविल है उसको उनके शरीर से निकालने के लिए डेवील जैसा ही
कोई चाहिए और आप लोग तो जानते ही है, भोलेनाथ तो आखिर भोलेनाथ है।
एकलव्य एक बार बस स्टॉप से घर को जा रहा था अपने मम्मी-पापा के पास शाम के 5 बज रहे थे,
उसी वक्त अचानक से रात हो जाती है, और
एकलव्य के सामने से ट्रक निकलता है उस ट्रक को निकलने के बाद एकलव्य का आक्सीडेंट हो जाता है,
उनके सर में चोट लग जाती है।
उन्हे कुछ भी समझ नहीं आ पाता है, वो आदित्य बिरला अस्पताल में होता है उनकी फैमिली भी होती है,
डॉक्टर हाँथ खड़े कर देते है,
बोलते है की
डॉक्टर - अभय सर माफी चाहते है, एकलव्य के सर पे चोट आई है, और इनके सर के
अंदर पहले से ही एक मांस बढ़ रहा था, वो फूट गया है,
और इनके बाहर और अंदर दोनों जगह खून बहुत बहा है।
अभय - डॉक्टर प्लीज़
डॉक्टर - अब भोलेनाथ ही बचा सकते है।
वो लोग भोलेनाथ से प्रार्थना करते है, भोलेनाथ ये सारा दृश्य देख रहे थे और मन ही मन हस भी रहे थे,
क्यूंकी उन्हे अब अपनी लीला जो दिखानी थी।
भोलेनाथ के एक और भक्त थे, जिनका नाम नंदेश्वर थे नंदेश्वर के बारे में अगले अध्याय में पता चलेगा,
नंदेश्वर जी का अभिमन्यू से बहुत गहेरा रिश्ता था।
रात के 12 : 00 PM बजे अचानक से तेज हवा चलती है, सब लोग बेचैन हो जाते है,
यही हवा आसुरी ग्रह पे भी होता है, असुरश्रेष्ठ बोलते है ये हवा कोई संकेत दे
रहा है, ऐसा तो नहीं शिवाय कोई षड्यंत्र रच रहे हो, वो घबराया होता है।
उधर एकलव्य ICU मे होता है, अचानक से वो उठ के बैठ जाता है,
उनके समक्ष एक सकारात्मक ऊर्जा आती है, और वो एक दम शांत हो जाता है।
और साक्षात आदियोगी महादेव आते है, एकलव्य हाँथ जोड़ लेता है,
भोलेनाथ कहते है, मेरे बच्चे हमे पता है अभी तुम कोनसी दुविधा में हो तुम्हारा दिल एकदम साफ है,
तुम्हे धर्म और अधर्म के प्रती बहुत बड़ा कार्य करना है,
मै तुम्हें कुछ साक्षात्कार कराता हूँ , वो समय के साथ रामायणकाल मे पहुँच जाता है विष्णुपुरण,
देवताओं और असुरों का युद्ध वहाँ से सीधा कृष्ण काल, महाभारत, फिर कलयुग का
आगामन और अभिमन्यू की ज़िंदगी के कुछ सच्चाई से भी वाखिफ होता है वहाँ से फिर
कल्कि अवतार तक की चीजों को देखता और समझता है, अब एकलव्य का दिमाग काफी चीजों
के लिए सजग हो जाता है, और वो बोलते है,
एकलव्य - हे भोलेनाथ आप ने ये सब जो भी दिखाया उनसे में कुछ-कुछ ही समझ रहा हूँ,
आखिर आप मुझसे कौनसी लीला करवाना चाहते है।
भोलेनाथ - तुम अभिमन्यु का साथ दो और उनके अंदर एक विश है जो उनकी अच्छाई को खत्म कर रहा है
और नांदेश्वर जो की मेरा भक्त है उन्हे असुर श्रेष्ठ ने बंधक
बना रखा है तुम्हें उन्हे भी बचाना है, और इस कार्य में मै तुम्हारे साथ नहीं आगे रहूँगा और वो विलुप्त हो जाते है।
अस्पताल में अचानक से सब-कुछ नॉर्मल हो जाता है, उसके बाद एकलव्य ज़ोर - ज़ोर से चल्लाता है ,
पापा-पापा कहे के
आखिर एकलव्य अभिमन्यू के संपर्क मे किस तरह से आता है,
किया अभिमन्यू से मिलने के लिए किया एकलव्य लखनऊ जाएगा?
चौथे अध्याय में आपको इनका जवाब मिलेगा थोड़ा इंतज़ार करो बॉस।
*शशांक शेखर*
*8299640275*
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